मिथ्यात्व संबंधित

दवाई लेने से व्यक्ति ठीक हो जायगा और मंत्र पढ़ने से हो जायेगा इन दोनों बातों में मिथ्यात्व की अपेक्षा क्या अंतर है ?

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शरीर हमारे अनुसार चले या हम उसे ठीक कर सके ऐसी अपेक्षा से तो दोनों ही कथनों से मिथ्यात्व दिखाई पड़ता है। लेकिन/-

सतर्कता में मिथ्यात्व नही होता और प्रमाद में मिथ्यात्व का प्रवेश हुए बिना नही रहता। (सामान्यतः)

यहाँ मिथ्यात्व से ज्यादा सतर्कता हावी है तो मिथ्यात्व इसमें ग्रहण ना ही करें क्योंकि ठीक होने के chances भी हैं और लोक की अपेक्षा ये राजमार्ग भी है।

यहाँ भी ठीक होने के chances हैं लेकिन यहाँ लोक की अपेक्षा प्रमाद की प्रवृत्ति है, ऐसे काम वे लोग करतें हैं जिन्हें ग्रहीत मिथ्यात्व की अधिकता हो तो यह उपाय योग्य ही नही।


• दोनों में व्यक्ति का ठीक होना उसके पूण्य पर आश्रित है।
• दोनों में ही शरीर को ठीक करने का प्रयत्न होने से मिथ्यात्व का समावेश हो सकता है।
लेकिन यदि ज्ञानी सम्यकदृष्टि इनमें से एक विकल्प चुनेगा तो वह प्रथम में प्रथम दवाई का ही होगा।
• क्योंकि दवाई की अपेक्षा मन्त्र आदि में अंधभक्तता अधिक है।

ज्ञानियों का विचार :point_up_2:

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इसी प्रसंग पर आदरणीय अजित जी भाईसाहब अलवर का एक विचार–

विनम्र निवेदन-
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान विश्व स्तर पर इतना एडवांस है, कुछ अपवादों को छोड़कर वैश्विक किसी भी विभीषिका की अतल गहराइयों में जाना उसकी प्रवृत्ति है, वर्तमान महामारी से बचाव (चिकित्सा नहीं)/और कथंचित राहत जिनमें देशी इलाज़, /टोने टोटके/मंत्र तंत्र के माध्यम से किसी भी प्रकार की चुनौती न केवल उन 30 लाख रोगियों की मौत का मखौल है, अपितु अभी भी ऐसे मरीज जिनके परिजन आक्सीजन/वेन्टीलेटर/इन्जेक्शन/आदि के लिये निरीह बने सडक दर सडक गिडगिडाये हुए आत्मीय जनों के एक सांस की भीख मांग रहे हैं, उनके प्रति निष्ठुर बनना है , आप विचारशील हैं विचार करें।

खेद सहित
अजित शास्री अलवर

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देखिए दवाई लेने से व्यक्ति ठीक हो जायेगा और मंत्र पढ़ने से ठीक हो जाएगा वास्तव के यदि गहराई से , परमार्थ से देखा जाए तो दोनों ही बातों की स्वीकृति मिथ्यात्व ही है।
इस संसार में कोई भी जीव मरण से रहित नहीं है, जन्म हुआ है तो मरण भी होगा। किसी भी समय किसी भी व्यक्ति का किसी भी कारण से मरण हो सकता है उसकी आयु पूर्ण होगी तो उसका उसी समय मरण होगा, ना तो दवाई काम आ सकती है और ना ही तंत्र मंत्र, फिर उसकी आयु एक समय मात्र भी बढ़ाने के लिए इन्द्र नरेंद्र और जिनेन्द्र सभी असमर्थ है।
अब कोई कहे की दवा और मंत्रों से भी लोग ठीक होते देखे जाते है।
तो ये भी ठीक है:- देखिए होता क्या है हमारे पूर्व पापोदय से हमें ये शरीर में कई तरह के रोग उत्पन्न होते है जिनसे हमें पीड़ा होती है ये हमारा पाप का उदय था, और यदि आयु शेष है तो पूर्व पुण्य के उदय से उस रोग की औषधि भी प्राप्त हो जाती है, अथवा मंत्रादि की शक्ति भी प्रभावशाली होती है इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता, किन्तु ये जीव को मरण से बचाते है ये महाअज्ञान है क्योंकि दवा और मंत्रादि किसी को मरण से बचा पाते तो इस संसार में कभी किसी का मरण ही नहीं होता।
अनादिकाल से अनेक बार विज्ञान ने आज से भी बहुत ज्यादा तरक्की है किन्तु आज तक ऐसी कोई दवा बनी ही नहीं जो हमें मरण से बचा सके, और यदि आयु पूर्ण हो जाती है तो व्यक्ति सिरदर्द जैसे छोटे मोटे रोग से ब्रेन हेमरेज के कारण से मृत्यु को प्राप्त हो जाता है कोई दवा काम नहीं आती।

तो अब हमें ऐसे में क्या करना चाहिए? पुरुषार्थ का महत्व?
तो भैया पुरुषार्थ वह है जो आत्म कल्याण के लिए किया जाए अन्य किसी भी सांसारिक कार्य को पुरुषार्थ की श्रेणी में नहीं लिया है।
बस हमें एक बात ध्यान रखना रखना चाहिए कि जितना हो सके ऐसी दवाओं का त्याग करना चाहिए जो किसी जीव की हत्या से निर्मित हो।
आयुर्वेदिक और अहिंसक दवा लें, श्रावकाचार अपनाएं, और अपना अधिक से अधिक समय आत्मकल्याण में लगाए।
बहुत समय हो गया अनादिकाल से भटकते-भटकते ये सब हम पहले भी अनेक बार देख चुके है सहन कर चुके है सारे प्रयास कई बार कर चुके है, अब एक ही काम बाकी है वह है आत्मानुभव, कषायों का अभाव वही एक मात्र हमारे लिए करने योग्य पुरुषार्थ है।
और ये सब सहज ही होगा बस हमें तो दिशा चयन करना है,उचित निर्णय करना है और अपने निर्णय पर अटल श्रृद्धा होनी चाहिए बाकि सब सहज होता चला जाएगा।

जय जिनेन्द्र :pray:

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दवा का संबंध धर्म-कुधर्म/मोक्षमार्ग से नहीं है जबकि मंत्र-तंत्रादि का सम्बंध मोक्षमार्ग से है।

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