अमूल्य तत्त्व विचार

सम्बंध दुःखमय कौन है? स्वीकृत करूँ परिहार क्या?

इस पंक्ति में दुःखमय शब्द से क्या अर्थ निकल रहा है?
यदि प्रश्न ऐसा होता कि सम्बंध सुखमय कौन है? और फिर ये कहा जाता कि किसे स्वीकार किया जाए और किसका परिहार किया जाए? तब तो अर्थ ठीक प्रतीत होता है। किंतु दुःखमय शब्द से विषय अस्पष्ट सा प्रतीत होता है।

गुजराती भाषा के जानकार यदि मूल से मिलाकर अर्थ स्पष्ट कर सकें तो अवश्य समाधान हो सकेगा।
@Vishal_Doshi @jinesh

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मूल गुजराती इस प्रकार है:

प्राप्त जानकारी के अनुसार मुझे जो समझ में आया वह इसप्रकार है:

वर्गणा शब्द वरगण (વળગણ) का तत्सम रूप भासित होता है जिसका भाव है किसी भी प्रकार का लगाव।

पूरे वाक्य का अर्थ कुछ इसप्रकार है:

किन संबंधों के साथ / किनके साथ मेरा लगाव है कि जिससे फिर यह विचार करूँ कि इसे रखूँ और उसे त्याग दूँ।

हिन्दी अनुवाद में ‘दुःखमय’ शब्द किस गुजराती शब्द का अनुवाद है यह ज्ञात नहीं हो सका।

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मेरे हिसाब से यहां कर्म वर्गणा का जीव से सम्बंध को दर्शाया गया है कि जब जीव और कर्म में कोई संबंध ही नहीं तो उनसे होने वाला सुख या दुख कैसा होगा