कर्मों की 10 अवस्थाओं में स्थिति बंध एवं सत्ता में क्या अंतर है?
परिभाषा इस प्रकार है-
स्तिथि बंध - कर्म रूप परिणामित पुद्गल स्कन्धों का आत्मा के साथ एकक्षेत्रअवगाहस्तिथिरूप कालावधि के बंधन को स्तिथि बंध कहते हैं।
सत्ता - अनेक समयों में बंधे हुए कर्मों का विवक्षित काल तक जीव के प्रदेशों के साथ अस्तित्व होने का नाम सत्ता है।
सत्ता - अनेक समय मे बंधे कर्मो के समूह को कहते हैं। (as mentioned)
-स्थिति में विवक्षित कर्म लिया जाता है,जैसे ज्ञानावरण की स्थिति 30 कोड़ा कोड़ी सागर है।
तथा
सत्ता में कर्म आत्मा के सम्बन्ध में हैं, इसकी मुख्यता है और स्थिति बन्ध में, कर्म एक निश्चित अवधि में हैं, (एक समय पर छूटेंगें ही) इसकी मुख्यता है।
दोनों में ही काल/समय/अवधि को ही मुख्य किया जा रहा है। फिर भेद कैसा?
दूसरी बात, स्थिति में सत्ता गर्भित प्रतीत हो रही है, फिर सत्ता की अलग से क्या आवश्यकता थी?
श्रेणिक को आयुकर्म की स्थिति बंध - 33 कोड़ाकोड़ी सागर हुई
कुछ काल बाद सत्ता - में घट कर कुछ हजार वर्ष हुई।
स्थितिबन्ध में मात्र बंध के समय का काल ही लिया जाता है
और सत्ता में बंध समय के बाद जब तक उदय नही आता तब तक कि स्थिति को सत्ता में लेंगे।
क्या इसे ऐसा समझा जा सकता है?
स्तिथि एक समय मे बंधे कर्मो की जीव से साथ बने रहने की स्थिति को मुख्यता से बताता है और सत्ता, सांसारिक जीवो के त्रैकालिक है।
जैसे किसी फार्मा कंपनी के स्टॉक (सत्ता)में बहुत सारे दवाई के लॉट पड़े रहते हैं। पर हर लॉट का expiry date(स्तिथि) अलग अलग हो सकेती है।
जब तक expiry date न आवे तब तक वह लॉट स्टॉक(सत्ता) में रह सकता है और जरूरत पड़ने पर बेचा भी जा सकता है(उदय).
एक्सपायरी डेट के बाद वह लॉट स्टॉक में नही रहेगा(उस particular कर्म वर्गणा की सत्ता समाप्त) पर दूसरे लॉट कायम रहेंगे(त्रैकालिक सत्ता),जब तक वह कंपनी रहेगी(संसार)।