लेश्या कषायों की तीव्रता को बताता है। प्रश्न है कि लेश्या का सम्यक्त्व या कषायों की चौकड़ी से कुछ सम्बन्ध है? जैसे:
क्या सम्यग्दृष्टि को भी कृष्ण लेश्या होती है? जैसे भरत-बाहुबली का युद्ध कृष्ण लेश्या थी? या श्रेणिक राजा की आत्म-हत्या? या सम्यग्दृष्टि नारकी के परिणाम?
क्या मिथ्यादृष्टि को भी शुक्ल लेश्या होती है? जैसे द्रव्यलिंगी मुनि, जो ग्रैवियक जाते है, उन्हें शुक्ल लेश्या के परिणाम होते है?
To summarise: सभी कषाय चौकड़ी में कृष्ण-शुक्ल हो सकते है? हाँ, संज्वलन में तीन लेश्या नहीं होंगी क्यूंकि वहां अशुभ परिणाम नहीं है, लेकिन अप्रत्याख्यान और प्रत्याख्यान में कृष्ण लेश्या हो सकती है? और अनंतानुबंधी शुक्ल लेश्या हो सकती है?
लेश्या और कषाय का भाव परक सुंदर विवेचन पं. दीपचंद जी द्वारा रचित श्री भावदीपिका ग्रन्थ में देखने को मिलता है। वहाँ अनन्तानुबन्धी की शुक्ल लेश्या और अप्रत्याख्यानावरण की कृष्ण लेश्या का भी उदाहरण दिया है। Link for pdf (देखें पृष्ठ क्रमांक ४६ एवं उससे आगे)।
स्वयं के अनन्तानुबन्धी एवं अन्य तीन कषायों में अन्तर करना भी आना चाहिए। हमें ऐसा नहीं समझना चाहिए कि मिथ्यादृष्टि की सारी कषाय अनन्तानुबन्धी की जाति की हो। क्योंकि मिथ्यादृष्टि के चारों ही का उदय कहा गया है।
यहाँ फिर प्रश्न है कि अनन्तानुबंधी भी चारित्र का ही घात करती है, तो इसके जाने पर कुछ चारित्र हुआ कहो। असंयत गुणस्थान में असंयम किसलिये कहते हो?
समाधानः – अनन्तानुबन्धी आदि भेद हैं वे तीव्र – मन्द कषाय की अपेक्षा नहीं हैं; क्योंकि मिथ्यादृष्टि के तीव्र कषाय होने पर व मन्दकषाय होने पर अनन्तानुबंधी आदि चारों का उदय युगपत् होता है। वहाँ चारों के उत्कृष्ट स्पर्द्धक समान कहे हैं। इतना विशेष है कि अनन्तानुबन्धी के साथ जैसा तीव्र उदय अप्रत्याख्यानादिक का हो, वैसा उसके जाने पर नहीं होता।