महावीर भगवान के संबंध में एक कथन आता है - " धन्य त्रियोदशी को भगवान ने योग निरोध किया।"
तो एक प्रश्न है कि इस संदर्भ में ‘योग निरोध’ से क्या तात्पर्य होता है?
यदि मन-वचन-काय रूप योगो के अभाव की बात है तो उसकी क्या विवक्षा है, क्योंकि अभी वे 13वें सयोग केवली गुणस्थान में ही हैं तथा योगों से रहित 14वें अयोग केवली गुणस्थान का काल मात्र अ, इ, उ, ऋ लृ के उच्चारण जितना होता है?