क्या आयु कर्म(भुज्यमान/बध्यमान) की अविपाक निर्जरा होती है?
(विशेषतः जीव के अरहंत अवस्था प्राप्त करने के पश्चात शेष रही आयु कर्म की स्थिति के प्रसंग में।)
कृपया समाधान करें।
आयु कर्म की कभी अविपाक निर्जरा नही होती है।अरहंत परमेष्ठी के भी समुदघात के समय आयु की स्थिति कम रह जाती है तब वे समुदघात से बाकी कर्मों की स्थिति आयु की स्थिति के समान करते हैं। आयु की अविपाक निर्जरा तो होती ही नही है पर भुज्यमान आयु का उत्कर्षण एवं अपकर्षण भी नही होता है।मात्रा बध्यमान आयु का ही उत्कर्षण और अपकर्षण हो सकता है।
Jai Jinendra,
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आयु कर्म की उदीरणा और अपकर्षण में क्या अंतर है?
( मात्र पारिभाषिक अंतर नहीं अपितु दोनों के होने पर कर्मों में जो परिवर्तन होता है और उनकी क्या-क्या स्थिति बनती है वह भी अपेक्षित है।)
क्योंकि भुजयमान आयु की उदीरणा तो संभव है परंतु अपकर्षण नहीं।
गोम्मटसार के आधार से आयु कर्म की कभी भी उदीरणा नही होती है।चाहे वो बध्यमान आयु हो या फिर भुज्यमान आयु हो।
रही बात उदीरणा और अपकर्षण में अंतर की तो उदीरणा में जो कर्म भविष्य में उदय में आने वाले होते हैं वो अभी उदय में आ जाते हैं परंतु अपकर्षण में कर्मों की स्थिति कम होती ।इस बात से यह सिद्ध है कि उदीरणा तो आयु कर्म की कभी भी नही होती है और अपकर्षण भी मात्र बध्यमान आयु का ही होता है भुज्यमान का नही ।
अकाल मरण के संदर्भ में भुज्यमान आयु की उदीरणा और अपकर्षण, दोनों का ही कथन आता है।
उस समय दोनों में से(उदीरणा या अपकर्षण) कोई भी हो, उनमें कोई अंतर होगा क्या?
कृपया गोम्म ट सार जी की गाथा संख्या दे सकते है