एकदेश और सकलदेश ज्ञान

प्रत्यक्ष ज्ञान के भेदों में दो भेद किए हैं - एकदेश और सकल प्रत्यक्ष। विषय सीमित होने के कारण अवधि और मन: पर्यय ज्ञान को एकदेश प्रत्यक्ष कहा और असीमित विषय होने से केवलज्ञान को सकल प्रत्यक्ष कहा है। क्या परोक्ष रूप मति और श्रुत ज्ञान में भी एकदेश और/या सकल परोक्ष की बात आती है और यदि हाँ तो वह किस प्रकार घटित होगा?

मति-श्रुत ज्ञान ज्ञानावरण कर्म के आधीन है इसलिए वह सकल प्रत्यक्ष (असीमित विषय) हो ही नहीं सकता।

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सकल परोक्ष - वस्तु की सभी अर्थ एवम व्यंजन पर्यायो को एक ही साथ एक समय मे ख्याल में इन्द्रियों एवम मन के माध्यम से ख्याल में आना।

अगर केवलज्ञान ही इन्द्रियों के माध्यम से ख्याल में आ जावे तो ज्ञानवरण का अभाव हो जाएगा।
इन्द्रियों के माध्यम से एकदेश परोक्ष ख्याल में आता ही है इसी को अकलंक स्वामी ने सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष नाम दिया है।

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सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष मतलब क्या होता है?

जिस प्रकार अवधि ज्ञान के विषय ग्रहण के अनुसार अनेक हिनाधिक्ता पायी जाती हैं उसी प्रकार मति-श्रुत में हिनाधिक्ता पायी जाती हैं (जैसे श्रुत ज्ञान की सीमा १२ अंग हैं) एकदेश तथा सकलदेश भेद प्रत्यक्ष ज्ञान के भेद हैं - परोक्ष ज्ञान में ज्ञानावरण कर्मो से हिनाधिक्ता के कारण एकदेश ही लगता हैं (correct me if missed anything)

रहस्य पूर्ण चिट्ठी, मोक्षमार्ग प्रकाशक

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