क्रमबद्ध पर्याय के निषेध से सर्वज्ञता का निषेध

अरिहंत भगवान हमारे परम-देव और परम-गुरु है, सिद्ध, तीर्थंकर भगवान हमारे परम-देव है, पांच परमेष्ठियों में उनका पहला और दूसरा स्थान है। अरिहंत भगवान हमारे परम-गुरु मुख्यतः तीन गुणों के कारण है: सर्वज्ञ, वीतरागी, हितोपदेशी। किसी भी जीव में अगर तीन में से कोई भी एक गुण का अभाव हो तो वो हमारे परम-गुरु नहीं हो सकते।

इसमें हम सर्वज्ञता के बारे में चर्चा करते है। सर्वज्ञ क्या है? जो लोक-अलोक में मौजूद सारे द्रव्यों की सारी (अनंतानंत) पर्यायों को एक ही समय में युगपद (एक साथ) जाने। अर्थात हर द्रव्य (चाहे जीव हो, पुद्गल हो या धर्म, अधर्म, आकाश, काल हो) उसकी हर पर्याय (भूत, वतर्मान, भविष्य) को जाने। अरिहंत और सिद्ध भगवान दोनो ही सर्वज्ञ है।

भगवान की सर्वज्ञता और क्रमबद्ध पर्याय में क्या सम्बंध है?

(१) भगवान सर्वज्ञ है, अर्थात भूत, वर्तमान, भविष्य की सारी पर्यायों को एक ही समय में जान रहें है, प्रति-समय जान रहें है। उन्होंने जो एक द्रव्य के भविष्य का परिणमन जाना है, वैसा ही वो द्रव्य परिणमित होगा, अन्यथा नहीं। और लोक-अलोक में सर्वज्ञ ने हर द्रव्य के भविष्य के हर समय का परिणमन जान लिया है अर्थात हर द्रव्य का परिणमन वैसा ही होगा, अन्यथा नहीं। उपरोक्त तर्क से यह सिद्ध होता है की हर द्रव्य के हर गुण की हर पर्याय के भविष्य का परिणमन तय है।

(२) अब हम द्रव्य के दो सामान्य गुणों पर विचार करते है: वस्तुत्व और अगुरुलघुत्व। द्रव्य के वस्तुत्व गुण के कारण उस द्रव्य का परिणमन स्वतः ही होता है, पर के कारण नहीं। द्रव्य का अगुरुलघुत्व गुण यह सुनिश्चित करता है एक द्रव्य दूसरे रूप नहीं होता, उसके गुण दूसरे रूप नहीं होते और वह द्रव्य बिखरता नहीं है, द्रव्यपना क़ायम रहता है।

तर्क (१) और (२) से यह सिद्ध होता है की प्रत्येक द्रव्य के प्रत्येक गुण की हर पर्याय (भूत, भविष्य और वर्तमान) का परिणमन अपने काल पर अपने ही कारण से होगा।

निष्कर्ष: प्रत्येक द्रव्य की गुण की हर पर्याय (भूत, वर्तमान, भविष्य) का परिणमन अपने ही काल में अपने ही द्वारा (किसी अन्य के द्वारा नहीं) ही होगा। वस्तु व्यवस्था में ऐसी ही सुनिश्चितता है।

लेकिन उपरोक्त निष्कर्ष ही तो क्रमबद्ध पर्याय की मूल परिभाषा है! क्रमबद्ध पर्याय यही तो कहता है।

भगवान की सर्वज्ञता सीधे क्रमबद्ध पर्याय की सिद्धि करती है।

क्रमबद्ध पर्याय के निषेध का परिणाम

अगर क्रमबद्ध पर्याय का निषेध करते है, तो भगवान की सर्वज्ञता का ही निषेध हो जाएगा! क्यूँकि अगर भगवान सर्वज्ञ है प्रत्येक द्रव्य की प्रत्येक पर्याय का क्रमबद्धपना सिद्ध है। अगर भगवान की सर्वज्ञता का ही निषेध कर दिया (क्रमबद्ध पर्याय का इनकार करने से) तो भगवान के तीन परम गुणों में से एक — सर्वज्ञ — का ही निषेध हो जाएगा! अगर भगवान सर्वज्ञ नहीं है तो हितोपदेशी कैसे होंगे? इसलिए क्रमबद्ध पर्याय का निषेध करने से भगवान के दो मूल गुणों का ही निषेध कर दिया है।

अगर भगवान हमारे परम-गुरु ही नहीं रहें, तो वो भगवान ही कैसे रहे? उनके भगवान होने पर ही प्रश्न-चिन्ह लग जाएगा!

क्रमबद्ध पर्याय के निषेध से सीधे अरिहंत, सिद्ध, तीर्थंकर भगवान की सत्ता का निषेध हो जाता है।

क्या क्रमबद्ध पर्याय का निषेध कर, हम महावीर भगवान की सत्ता का ही निषेध करने का दुस्साहस कर सकते है?

उपरोक्त विचार में कहीं पर भी त्रुटि हो तो कृपया सुधार देवें।