प्रत्याख्यान कषाय सर्वघाती प्रकृति कैसे?

सर्वघाती प्रकृतियों के उदय में गुणों का सर्व घात होता हैं। पंचम गुणस्थान में प्रत्याख्यान सर्वघाती कषाय का उदय होने पर चारित्र आंशिक हैं। सर्वघाती प्रकृति का उदय होने से चारित्र सम्पूर्णतया प्रगट नहीं होना चाहिए परन्तु वह प्रगट हैं। सो उसका कारण क्या ? कृपया स्पष्ट करें।

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Anatanubandhi kashay ka naash pancham gunasthanvarti ko ho chuka h, so with respect to it, Charitra toh aanshik pragat h na, pratyakhyan kashay fir chahe sarvghati kyon na ho…

पांचवे गुणस्थान में जो चारित्र होता है वह अनंतानुबंधी और अप्रत्याख्यानवरण के आभव पूर्वक वाला होता है। जो चारित्र प्रत्याख्यानवरण के अभाव पूर्वक होना चाहिए उसका सम्पूर्णतया अप्रगट पना वहाँ रहता है, इसलिए तत्सम्बन्धी सम्पूर्ण चारित्र का आभव होने से वह सर्वघाति प्रकृति है।
अब कोइ पूछ सकता गई कि जो चारित्र प्रगट है वह क्या चारित्र गुण का अंश नही है?
उसका उत्तर यह है कि चारित्र मोहनीय 4 भागों में बटी हुई है, अनंतानुबंधी से संज्वलन तक। और फिर ये सर्वघाति और देशघाति के रूप में बटी हैं। तो जिस संबंधी उदय रहता है उस संबंधी चारित्र का अभाव वहाँ पर होता है। अब जैसे संज्वलन है , तो वह देशघाति है, इसलिए उस संबंधी चारित्र भी अलग अलग होता है। अनंतानुबंधी आदि 3 चौकड़ी तो सर्वघाति हैं तो उनका उदय रहने पर तत्सम्बन्धी चारित्र का पूर्णतया नाश रहता है।
( सर्वघाति प्रकृतियों में क्षयोपशम नही घटता, उदय अथवा उपशम रूप अवस्था ही रहती है)

चूँकि गुण के सम्पूर्णतया अप्रगट होने की बात कही है तो उसका अर्थ ऐसा ही लेना । क्योंकि केवलज्ञानावरण में भी ज्ञान गुण की बात है और मतिज्ञान में भी। अब कोई कहे कि ज्ञान गन का ही सम्पूर्णतया अप्रगतपना होना चाहिए , सो वह तो नही ही होगा।

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संयमासंयम को क्षयोपशम भाव माना गया है। अर्थात् प्रत्याख्यान के उदय में चारित्र गुण का आंशिक घात होता है, पूर्ण घात नहीं।

कृपया इस तथ्य पर भी विचार करें।

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