सप्तभंगी के सम्बंध में प्रश्न है:
परमभाव प्रकाशक नयचक्र, प्रष्ठ ४०७
इस उल्लेख में “कहे जा सकने में” ३ ही क्यूँ लिए? नहीं कहे जा सकने के विरुद्ध ४ नय क्यूँ नहीं लिए?
(१) सब कुछ कहा जा सकता है
(२) अस्तित्व कहा जा सकता है
(३) नास्तित्व कहा जा सकता है
(४) क्रम से दोनो कहे जा सकते है
दूसरा उदाहरण देखे तो
इसमें (४) में कथनचित घट अव्यक्तव्य लिया। उसके विरुद्ध कथनचित घट व्यक्तव्य्य क्यूँ नहीं लिया?
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सब कुछ कह सकने की क्षमता छद्मस्थ ज्ञान में नही है। सब कुछ कहने में नय व्यवहार भी नही रह जायेगा।
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परमभाव प्रकाशक नयचक्र - page- 354
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१) सब कुछ कहाँ जा सकता हैं, यह भंग संभव नहीं हैं।
२) प्रथम तीन भंगो से यह स्वतः सिद्ध हैं की वस्तु कथंचित वक्तव्य हैं, इसलिए अलग से “कथंचित वक्तव्य” भंग कहकर कुछ विशेष प्रयोजन सिद्ध नहीं होता हैं।
२) कथंचित अवक्तव्य कहकर - कथंचित वक्तव्य भी सिद्ध होता ही है। इसलिए कथंचित अवक्तव्य में कथंचित वक्तव्य भी अंतर्भाव हैं।
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