समयसार बंध अधिकार में आया है (गाथा 265) कि अगर मुनि ईर्या समिति का पालन करते हुए विहार करते है और उनसे पाँव के नीचे जीव आये हुए जीवों कि हिंसा हो जाये तो भी उसका बंध नहीं होता। बंध परिणामों से होता है और “मैं मार सकता हूँ” और “मैं बचा सकता हूँ” इन अध्यवसानों से भाव हिंसा होने से भाव बंध होता है।
प्रश्न १: अगर मुनि के पाँव के नीचे जीव आने से जीव मर जाये तो उसके बाद उनका क्या परिणाम होता है? “मैंने जीव को मारा” या “मेरे पैर के नीचे आकर जीव मर गया” - ऐसा परिणाम तो होगा नहीं?
प्रश्न २: अगर मुनि के विहार करते वक़्त उन्हें आगे जीव दिख गया और उन्होंने पैर को आगे नहीं बढ़ाया जिससे उस जीव का घात नहीं हुआ, तो फिर मुनि का क्या परिणाम होगा? “मैंने जीव को बचा लिया” - ऐसा तो होगा नहीं?
EDIT: थोड़ा विचार करने पर प्रतिभासित होता है कि प्रश्न १ के उत्तर में तो मुनि बस इस event के ज्ञाता रहेंगे। क्या उन्हें इस सन्दर्भ में करुणा का भाव या ग्लानि का विकल्प आएगा? अगर हाँ, तो कर्तत्व बुद्धि से रहित उस विकल्प का स्वरुप क्या होगा?
प्रश्न २ में शंका अभी भी है। मुख्य रूप से कर्तत्व बुद्धि से रहित उस विकल्प का स्वरुप क्या है जब मुनिराज जीव को देखेंगे और अपना पाँव आगे नहीं बढ़ाएंगे?