सच्चे गुरु की परिभाषा

इससे तो सभी परिचित हैं ही।

सिर्फ भावलिंग हो ही नही सकता, द्रव्य और भाव की संधि अनुपम है, जहाँ भाव होगा, वहाँ द्रव्य होगा ही होगा।


द्रव्यलिंग और भावलिंग के संदर्भ में इसे अवश्य सुनें।

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