ये पंक्तियाँ कहाँ से ली गयी हैं?

निज में निज का अनुभव होवे ,निश्चय सम्यकज्ञान हो।
है निमित्त व्यवहार जिनागम,से हो तत्वज्ञान जो।
शुद्ध उच्चारण सदा करूं, अरु शुद्ध अर्थ अवधारू मैं ।
उभय शुद्धि धरि योग्य काल में,ही स्वाध्याय संभारु मैं।
सदा बढाऊँ गुरु का गौरव, यथायोग्य सम्मान करू।
विनय पूर्वक संशयदि तज, विकसित सम्यकज्ञान वरू।

ये पंक्तियाँ कहाँ से ली गयी हैं एवं इनके रचयिता कौन हैं?

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रत्नत्रय पूजन - सम्यक ज्ञान का अर्घ्य

रचयिता - आ. बड़े प. जी साहब

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