पँचमेरु की पूजन होती है, इन पाँच दिनों में, इसलिए पुष्पांजलि नाम है।
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इन दिनों देव और मनुष्य पुष्पांजलि व्रत भी करते है - इसमें दिन में तीन बार (सुबह, दुपहर, शाम) को 24 तीर्थंकरो की स्तुति करके उन्हें पुष्प समर्पित करते है। परिक्रमा लगते है। ऐसा पांच वर्षो तक करते है फिर व्रत का समापन्न करते है।
चंद्रशेखर चक्रवर्ती ने पूर्व में (प्रभावती के भव में) इस व्रत को किया था।
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