“गणधर महाराज एक अन्तर्मुहूर्त में ही पूरे द्वादशांग को समझ जाते है” - यहाँ जघन्य अन्तर्मुहूर्त की बात है या within 48 min की ? क्योकि यहाँ यह भी कहा की एक ओमकार में पूरा द्वादशांग समाया हुआ है।
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“गणधर महाराज एक अन्तर्मुहूर्त में ही पूरे द्वादशांग को समझ जाते है” - यहाँ जघन्य अन्तर्मुहूर्त की बात है या within 48 min की ? क्योकि यहाँ यह भी कहा की एक ओमकार में पूरा द्वादशांग समाया हुआ है।
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जय जिनेन्द्र चिन्मय जी,
गणधर देव जो द्वादशांग का पूरा पाठ जितने समय में करते हैं, वह उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है। जी within 48 min…
हाँ, क्योंकि जिनेन्द्र भगवान की वाणी ॐकारमयी ही तो है, तो सम्पूर्ण द्वादशांग उसी में समाया है, एवं यह भी आया है, कि 64 अक्षर भी ॐ से ही निकले हैं।
लेकिन फिर भी समय उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है।