जैनियों में काफ़ी प्रचलन है की सोंठ यद्यपि सूखा अदरक है लेकिन ज़मीकंद का दोष नहीं लगता है। कृपया इसपर प्रकाश डालें, अगर आगम प्रमाण हो तो वो भी कृपया बतला देवें।
मेरा मानना है कि जो अणुव्रत आदि का पालन करते हैं, मर्यादित भोजन ग्रहण करते हैं, उन्हें सामान्यतः तो इस (सोंठ/हल्दी आदि) की आवश्यता नहीं पड़ती; बाकी विशेष परिस्थिति में औषधि के रूप में कारगर होती हैं।
जो ज़्यादा गरिष्ठ या तैलीय या बाज़ार का या अमर्यादित भोजन ग्रहण करते हैं उन्हें इसप्रकार की विशेष दवा की प्रतिदिन आवश्यकता होती है।