स्मृति आदि किस प्रत्यक्ष के बाद? पारमार्थिक अथवा सांव्यवहारिक अथवा दोनों

स्मृति आदि परोक्ष ज्ञान के अनिवार्य कारण के रूप में प्रत्यक्ष ज्ञान को लिया गया है - “प्रत्यक्ष आदि निमित्तं…”; यहां प्रश्न है कि यहां कौनसा प्रत्यक्ष लेना है?
पारमार्थिक प्रत्यक्ष अथवा सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष अथवा दोनों ही?
यही प्रश्न अन्य रूप में -
क्या पारमार्थिक प्रत्यक्ष की स्मृति आदि हो सकती है?

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न्यायदीपिका अथवा परीक्षामुख में जब इसकी चर्चा की, तब उनके टीकाकार यह स्पष्ट कर देतें हैं कि स्मृतिज्ञान के लिए पूर्व अनुभव रूप धारण प्रत्यक्ष निमित्त है।

पूर्णसूत्र इस प्रकार है/-
प्रत्यक्षादि निमित्तम् स्मृति-प्रत्यभिज्ञान-तर्क-अनुमान-आगम-भेदम्।
स्मृति में प्रत्यक्ष- अनुभव रूप धारणा।
प्रत्यभिज्ञान में प्रत्यक्ष- पूर्वस्मरण और वर्तमान में पुनः दर्शनरूप प्रत्यक्ष।

इसके बारे में कहां नही जा सकता क्योंकि प्रमेयरत्नमाला में जब इस पद की व्याख्या की, तो वहाँ कहा कि प्रत्यक्षादि निमित्तम्, इस पद में आदि शब्द से परोक्ष भी लेना है, तो भी पारमार्थिक प्रत्यक्ष तो नही लेना चाहिए, ऐसा मेरा मत है।

पारमार्थिक प्रत्यक्ष तो अवधिज्ञान, मनः पर्यय ज्ञान और केवलज्ञान का नाम है, स्मृति आदि तो मतिज्ञान के भेद हैं, तो सामान्य रूप से यही होना चाहिए कि पारमार्थिक प्रत्यक्ष में स्मृति आदि नही है, लेकिन पारमार्थिक प्रत्यक्ष की स्मृति होने में कोई बाधा प्रतीत नही हो रही है।
@jinesh

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एवं

इन दो विरोधों के मूल में ही मेरा प्रश्न है।

यहाँ प्रत्यक्ष शब्द से सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष को लेना ही उचित रहेगा।

ऐसा भी कह सकतें हैं कि जब टीका में कहा कि परोक्ष भी लेना चाहिए तो वहाँ ये बताने का अभिप्राय हो कि कहा तो प्रत्यक्ष जा रहा है लेकिन वास्तव में वह प्रत्यक्ष नही परोक्ष ही है।

प्रश्न तो उचित है…:pray:

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प्रथम शंका को इस प्रकार स्थगित किया जा सकता है, लेकिन ये बात बिल्कुल सत्य है कि वहाँ (उक्त सूत्र में) तो सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष की ही बात है।

रही बात पारमार्थिक प्रत्यक्ष की, तो स्पष्ट तो कहीं पढा नही, लेकिन विशदं प्रत्यक्षम् की व्याख्या में अनुभवसिद्ध निर्मलत्व की बात है, तो वहाँ अनुभव से क्या लें?

इससे मैं कहना चाहता हूँ कि उस अनुभव की तो स्मृति करनी ही होगी, तो कह सकतें हैं कि पारमार्थिक प्रत्यक्ष के पूर्व स्मृति घटित हो जाती है।
:sweat_smile: त्रुटियों से अवगत करायें।

यहां पर आदि शब्द से परोक्ष लिया - यह बात ठीक है परन्तु वहां विवक्षा वह नहीं है जो आप कह रहे हैं।
स्मृति के लिए प्रत्यक्ष निमित्त है; प्रत्यभिज्ञान के लिए प्रत्यक्ष और स्मृति (परोक्ष) निमित्त है, तर्क के लिए पूर्व के तीनों, और अनुमान के लिए पूर्व चारों निमित्त हैं। अतः यहां भी का प्रयोग पारमार्थिक प्रत्यक्ष के निषेध के लिए नहीं है, अपितु प्रत्यक्ष के साथ परोक्ष की भी निमित्तता है, यह बताने के लिए है। (‘भी’ समन्वय का सूचक न होकर अनुक्त की सत्ता का सूचक है।)

मति और श्रुत ज्ञान के विषय सारे ही पदार्थ हैं (सर्व द्रव्यों की असर्व पर्याय), तब फिर अतीन्द्रिय आत्मा की, उसके अनुभव की, अन्य सभी क्षायोपशमिक ज्ञान की स्मृति आदि हो सकती है - ऐसा स्वीकार करने में क्या बाधा है?

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अस्तु।
:pray: