ज्ञान स्वभाव और षटकारक

एक बहुत ही सुंदर भजन है (आओ रे आओ रे ज्ञानानंद की डगरिया), उसका एक अंश है:

मैं ज्ञायक मैं ज्ञान हूं, मैं ध्याता मैं ध्येय रे,
ध्यान ध्येय में लीन हो, निज ही निज का ज्ञेय रे ॥ आओ…

ये एकदम आत्मा को छू लेने वाली पंक्तियाँ है जो स्व-द्रव्य की सम्पूर्ण स्वतंत्रता को बतलाती है।

प्रश्न है की यहाँ पर ज्ञायक, ज्ञान, ध्याता, ध्येय, ध्यान, ज्ञेय शब्द है। इन सब में षटकारक कैसे लगेगा?

मेरा ऐसा अनुमान है:

कर्ता: ज्ञायक
कर्म: ज्ञान
करण: ?
संप्रदान: ?
अपादान: ?
अधिकरण: ध्येय?

कृपया इसका विवरण कीजिए, और उपरोक्त में त्रुटि हो तो बताइए।

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वास्तव में ये जिनधर्म का सौंदर्य ही है कि यहाँ के भजनों में भी पूर्ण अध्यात्म भरा हुआ है।

प्रश्न की ओर बढतें हैं/-

यदि कारकों की आप बात कर रहें हैं, तो उसके विकल्प चक्र को परिभाषित करते हुए समयसार गाथा 73 का अंश देखने योग्य है।

मैं जानता हूँ कि प्रश्न विकल्पों के लिए नही है, ज्ञान आदि शब्दों में इनकी घटना को लेकर है, लेकिन फिर भी इनसे कारकों का स्वरूप समझ में स्पष्ट रूप से आ जाता है।

यहाँ प्रथम तो बाह्य विकल्पों को दूर करने के लक्ष्य से ही इस पंक्ति का निर्माण हुआ है, और कह रहें हैं, कि
कर्ता- ज्ञायक
कर्म- ज्ञान
कर्ता- ध्याता
कर्म- ध्यान
करण- ज्ञान स्वभाव
सम्प्रदान- ज्ञायक की प्राप्ति
अपादान- यहां मेरे विचार से समयसार का ही अर्थ लेना हो जो ऊपर दिया गया है।
अधिकरण- ध्येय।

यदि इस प्रकार षट कारक घटित करतें हैं, तो मुझे कोई दोष प्रतीत नही हो रहा है। शेष विद्वज्जन समाधान करेंगें। @Sayyam जी
:pray:

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