विपरीत परिस्थिति में तत्त्व अभ्यास

विपरीत परिस्थितियों में तत्व/धर्म का अभ्यास कैसे करना चाहिए?
क्रमबद्धता, कर्मो का उदय सबका ज्ञान होते हुए भी किस तरह मनन / चिंतन करें।

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विपरीत परिस्थितियों में सर्वप्रथम इसका विचार आवश्यक है कि कोई भी परिस्थिति अनुकूल-प्रतिकूल / इष्ट-अनिष्ट नहीं थी/है/होगी। विपरीत मनःस्थिति के समय मोक्षमार्ग प्रकाशक अध्याय 4 की विषयवस्तु का चिन्तवन करें, उसी का अभ्यास करें।

कोई त्रुटि हुई हो तो क्षमा।

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जो परिस्थिति सीता जी के साथ थी वही मदनरेखा के साथ थी, परन्तु मदनरेखा ने बोला की पहले तुम मुझे किसी मुनिराज के दर्शन करादो, मुनिराज अवधिज्ञानी थे, वे सब समझ गए, मुनिराज के उपदेश से उस विद्याधर के परिणाम बदल गए और मदनरेखा की रक्षा हो गयी। याद रखो पंच परमेष्ठी सदा शरण है, उनसे रक्षा होती है।

एक भाईजी बहुत बीमार हो गए थे तब वे कहने लगे की ‘अब णमोकार मंत्र से तो कुछ नहीं होता, कोई नया मंत्र बताओ’। उनकी किडनी फेल हो गयी थी और णमोकार मंत्र बोलने से भी वे ठीक नहीं हो रहे थे इसलिए उनकी श्रद्धा डगमगा गयी। पर ऐसा नहीं है। सुदर्शन जी ने रानी के कमरे से ही णमोकार मंत्र बोलना शुरू कर दिया होगा परन्तु तब समस्या दूर नहीं हुई, राजा के आगे भी नहीं हुई, जब उन्हें गर्दन काटने के लिए फिट कर रहे थे तब भी नहीं हुई, लेकिन बिल्कुल एन्ड मौके पर, जब तलवार चली तो सब बदल गया। चांडाल को जब बंधी बनाया गया तब समस्या दूर नहीं हुई, उसे जब खाई में फैंकने ले जा रहे थे तभ भी नहीं, बिल्कुल एन्ड मौके पर जब उसे फैंक दिया गया, तब अचानक सब बदल गया।------ मुसीबत में णमोकार मंत्र बोल रहे हैं और मुसीबत दूर नहीं हो रही इसका मतलब ये नहीं है की णमोकार मंत्र फैल हो गया, मुसीबत बढ़ने दो, बढ़ने दो, बिल्कुल एन्ड मौके पर सब बदल जायेगा, एक क्षण में देव गति प्राप्त हो जाएगी, सारी प्रतिकूलता, अनुकूलता में बदल जाएगी।

मुसीबत आते ही हम सोचने लगते हैं कि, हाँ हमने तो बहुत पाप किये हैं, अब उदय तो आएगा ही, हाय ! मेरे पाप का उदय प्रारम्भ हुआ। हम उन पापों की ओनरशिप ले लेते हैं और खुद को पापी समझने लगते हैं। ये बिल्कुल ऐसा है जैसे कोई कोर्ट में जाकर कहे “हाँ ! मैंने अपराध किया है” फिर तो दंड मिलेगा ही। स्वयं को निरपराधी अनुभव करो, हमने पूर्व में जो पाप किये हैं वे कषाय की तीव्रता में, अज्ञान में, किये हैं और अज्ञान-कषाय जीव को अनादि से है, इसलिए जीव का कोई अपराध नहीं है। जब मैं अपराधी नहीं हूँ, फिर प्रकृति मुझे किस बात का दण्ड देगी ? हमारा सारा दुःख क्षणिक है, हमारे दुःख की परंपरा तो तभी ख़तम हो गयी थी जब हमने जिनेन्द्र देव को सच्चा देव स्वीकार कर लिया था। अब तो जब तक संसार में रहेंगे पुण्य के ही साथ रहेंगे। कहते भी हैं - जिनेन्द्र भगवान के भक्त कभी भिखारी नहीं होते। इस डूबते हुए दुःख से क्या डरना, अब तो सुख की बड़ी परम्परा शुरू होने वाली है जो अनंत काल में भी नहीं समाप्त होगी।

जिन्होंने अपने सारे जीवन भर पाप किये थे, वे भी देव-गुरु, णमोकार मंत्र के प्रभाव से सद् गति को प्राप्त हुए। शूली पर चढ़ा दृणसूर्य चोर, शिकार को निकले राजा और सिपाही। मछुआरे ने अपने जीवन भर मछलियां मारी थी बस अंतिम दिन नहीं मारी, इतने में ही वह इतना बड़ा राजा बन गया। कूड़ा बटोरने वाली भी कर्मों की विचित्रता से रानी बन सकती है। णमोकार मंत्र कभी फैल नहीं होता। घबराओ मत, स्वयं को पापी मत समझो, हृदय से भगवान को पुकारो, वे तुम्हें निश्चित ही संसार से पार उतारेंगे। याद करो सुरसुन्दरी, मृगांकलेखा को (कैसी भी आये विपत्ती, बेटा निज धैर्य न खोना), जेल में पड़े वृन्दावन जी को, हाथी के पाँव के नीचे पड़े टोडरमल जी को, जिनकी ३ पत्नी ११ बच्चे मर गए ऐसे बनारसीदास जी को, जिनके शरीर में कीलें ठोंक दी गयीं ऐसे लकुच मुनिराज को, जिनके दोनों हाथ पैर काट दिए गए, चिड़िया ने जिनकी आँखें फोड़ दी, जिन्हें घानी में पेल दिया, जो बाढ़ में बह गए (तो तुमरे जिय कौन दुःख है, मृत्यु महोत्सव भारी)

आएगा पुण्योदय सब करेंगे मिल सत्कार, आएगा पापोदय होगा तेरा तिरस्कार
दोहु पुद्गल पर्याय, तजि हर्ष विषाद न करना, कैसी भी आये विपत्ति, बेटा निज धैर्य न खोना ।।

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