जिन स्तुति- निज के आनंद की तो बात कुछ विचित्र है।

।।जिन स्तुति।।

देख छवि सौम्य मानो मेरा ही भविष्य रूप,
मिल के तुमसे आज मेरा कण-कण पवित्र है।
मेरी निधि मुझ में है आपने बताए दियो,
आप सम कोई जग में मेरा नहीं मित्र है।
पावन मन भावन निज रूप जिन में दिखता है,
मानो लगता सामने मढ़ा मेरा ही ही चित्र है।
वीतराग मूरत मुख शांत लीन अंतर में,
निज के आनंद की तो बात कुछ विचित्र है।।

1 Like