कर्म तो दिखाई देते नही सूक्ष्म है, जो पुदगल है | इसके उदय से या निर्जरा होने से बाहर की प्रतिकूलताएँ ओर अनुकूलताएँ कैसे होती है ? पुदगल ही पुदगल को परिणमित करता है?
इस के कारण बाहर की अवस्थाएँ कैसे बदल जाती है?
देखिये,
आप इस प्रकरण का ये अर्थ समझें कि - निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध बहुत प्रकार का हो सकता है, निकट से निकट और दूर से दूर।
एक निमित्त - नैमित्तिक सम्बन्ध यह भी है कि बादलों की रचना आसमान में बिखर गई और वैराग्य हो गया ।
और
एक निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध यह भी है कि जीव ने परिणाम किये और कर्मबन्ध हुआ तथा कर्म का उदय आया और जीव के परिणाम बिगड़े ।