(तर्ज- प्रभु शान्ति छवि तेरी..)
प्रभु इंतजार उनका, जिन मुक्तिमार्ग अपनाया।
वंदन अगणित मुनिवर, सिद्धों का संग पाया।।
जंगल तो बहाना है, मुनि तो निज में विचरें।
लेखन तो ज़रिया है, जिससे जिन वच उचरें।।
ऐसे उपकारी जन, चिंते हि चित्त हर्षाया।
वंदन अगणित मुनिवर, सिद्धों का संग पाया।।1।।
जिन की इक सूरत हो, लघुनंदन सिद्धों के।
धीरज की मूरत हो, युवराज हो सिद्धों के।।
उपसर्ग किए जिनने, उनने भी शीश नवाया।
वंदन अगणित मुनिवर, सिद्धों का संग पाया।।2।।
निष्कम्प निडर निश्छल, जब ध्यान मग्न निश्चल।
पशु देख टक-टकी से, सब बैर होत निर्मल।।
मैत्री प्रमोद करुणा, उद्यान सुगुण विकसाया।
वंदन अगणित मुनिवर, सिद्धों का संग पाया।।3।।
जीवन ही अलौकिक है, समता रसपान किया।
वात्सल्य असीम भरा, शम से जग जीत लिया।।
‘समकित’ को पाकर के, मुक्ति का बीज लगाया।
वंदन अगणित मुनिवर, सिद्धों का संग पाया।।4।।
प्रभु इंतजार उनका, जिन मुक्तिमार्ग अपनाया।
वंदन अगणित मुनिवर, सिद्धों का संग पाया।।