हुण्डावसर्पणी काल के दोष

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हुंडावसर्पिणी काल के दोष
असंख्यात अवसर्पिणी उत्सर्पिणी काल की शलाकाओ के बीत जाने पर एक प्रसिद्ध हुंडावसर्पिणी आती है ।वर्तमान में हुंडावसर्पिणी का पंचम दुःषमा काल चल रहा है जो 21हजार बर्ष का होता है जिसके ढाई हजार बर्ष वीत चुके हैं ।हुंडावसर्पिणी काल में अनेक अनहोनी घटनायें घटित हो जाती है जैसे :-
:zap:63 शलाका पुरुष ना होकर माञ 58 पुरुष का होना
:zap:चक्रवर्ती की विजय का भंग होना ।चक्रवर्ती भरत के साथ ऐसा हुआ ।
:zap:इस काल में सुषमा दुःषमा नामक तृतीय काल की स्थिति में कुछ काल शेष रहने पर वर्षा आदि पडने लगती है इसी तृतीया काल में कल्पवृक्षो का अंत हो जाता है कर्म भूमि का व्यापार प्रारंभ हो जाता है ।
:zap:इसी काल में प्रथम तीर्थंकर और चक्रवर्ती भी उत्पन्न हो जाते है ।जबकि नियम से चतुर्थ काल में होना चाहिए ।
:zap:नौवे से लेकर सोलहवे तीर्थंकर तक सात तीर्थंकरो के समय में धर्म का विच्छेद होता है।इसमें मुनि आर्यिका श्रावक श्राविका नही होते हैं ।
:zap:नियम से सभी 24 तीर्थंकरो का जन्म एक ही स्थान अयोध्या में ही होना चाहिए परन्तु काल दोष के प्रभाव से केवल पाँच तीर्थंकर का जन्म अयोध्या में तथा 19 तीर्थंकर का जन्म कुण्डलपुर,चंपापुर ,हस्तिनापुर इत्यादि स्थानो पर हुआ ।
:zap:इसी प्रकार सभी तीर्थंकर का मोक्ष एक ही स्थान सम्मेद शिखर जी से होना चाहिए परन्तु काल दोष के प्रभाव से 20 तीर्थंकर सम्मेद शिखर जी से मोक्ष गये शेष चार क्रमशः आदिनाथ जी कैलाश पर्वत से,वासुपूज्य चंपापुर से,नेमिनाथजी गिरनार से और चोबीसवे तीर्थंकर महावीर स्वामी पावापुर से मोक्ष गये ।
:zap:काल दोष के कारण ही पाँच तीर्थंकर बालयति हुए 12वे वासुपूज्य जी,19वे मल्लिनाथ जी,22 नेमिनाथजी ,23 वे पारसनाथ जी,24वे महावीर स्वामी जी ।
:zap:प्रथम तीर्थंकर से पहले ही उनके पुञ अनन्त वीर्य,और बाहुबली जी मोक्ष गये जबकि मोक्ष का द्वार तीर्थंकर ही खोलते हैं ।
:zap:विशेष इस काल दोष के कारण ही सातवें तेइसवे चोबीसवे तीर्थंकर पर मुनि अवस्था में उपसर्ग हुए
:zap:सुपार्शव नाथ जी पर उपसर्ग-सुपार्शव नाथ जी ध्यान में लीन थे तब उन पर दैविक उपसर्ग हुआ
:zap:पारसनाथ जी पर उपसर्ग- तेइसवे तीर्थंकर पारस नाथ जी अहिक्षेञ जी में सात दिन का योग धारण करने का नियम लेकर वे श्रेष्ठ धर्म ध्यान में लीन थे । इसी समय संवर नाम का कमठ का जीव ज्योतिष देव आकाश मार्ग से जा रहा था भगवान के ऊपर से जाने के कारण उसका विमान रूक गया पारसनाथ को देखते ही पहले वैर का संस्कार होने से वह क्रोधित हुआ ।भारी गर्जना भारी वर्षा ओले आदि सात दिन तक महोपसर्ग किया ।पद्मावती धरणेन्र्द आये और भगवान का उपसर्ग दूर करने में सहायक वने ।
:zap:भगवान महावीर पर उपसर्ग- एक दिन धीर वीर भगवान उज्जयिनी नगरी के अतिमुक्तक नामक शमशान में प्रतिमायोग में विराजमान थे ।उन्हें देखकर महादेव नामक रूद्र ने अपनी दुष्टता से धैर्य की परीक्षा लेने के लिए राञी के समय ऐसे अनेक बडे बडे बेतालो का रूप बनाकर भयंकर उपसर्ग किया परन्तु वह भगवान को चलायमान करने में समर्थ नही हुआ ।और भगवान की स्तुति करके वहां से चला गया :zap:अति वृष्टि,अनावृष्टि,भूकंप,वज्राग्नि आदि का गिरना नाना प्रकार के दोष इस हुंडावसर्पिणी काल में हुआ करते है ।
:zap:हुंडावसर्पिणी काल के दोष प्रभाव से ही मानव जाति के जी वो का सामूहिक पाप उदय में आया है,उसी के प्रभाव से सम्पूर्ण विश्व में कोरोना वैश्विक महामारी फैली है।

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