मंदिर अथवा मूर्ति का इतिहास

  • जैन मान्यता के अनुसार क्या जैन मंदिर अथवा चैत्य आदि का निर्माण यह मात्र एक परंपरा है अथवा धर्म का अंग भी है?

  • क्या प्रतिदिन देव दर्शन करना अथवा मूर्ति की पूजा करना अनिवार्य है?

  • जिन मंदिर का निर्माण किस उद्देश्य से किया जाता है अथवा मूर्ति आदि की स्थापना का इतिहास क्या रहा होगा?

  • चैत्य शब्द का वास्तविक अर्थ क्या है?

नोट- यहाँ पर दिगंबर परंपरा मात्र की मुख्यता नहीं है अपितु ऐतिहासिक रूप से शोध खोज संबंधित उत्तर की अपेक्षा है।

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मैं शास्त्र का उदहारण तो नहीं दे सकता लेकिन मेरी जो समझ है उससे उत्तर देने का प्रयास करूंगा। अगर यह आगमानुसार नहीं हुआ तो उसके लिए क्षमा।

१. परंपरा है। महार्घ में कृत्रिम अकृत्रिम चैत्यालयों का वर्णन आता है। हम महार्घ की प्राचीनता पर प्रश्न कर सकते है.
२. “अनिवार्य” किस सन्दर्भ में? सम्यक्त्व की प्राप्ति के लिए? पुण्य के लिए? जैन श्रावक बनने के लिए (जैन श्रावक की भी कई परिभाषाएं है)
३. मूर्ति की स्थापना के पश्चात् वह मूर्ति अरिहंत भगवान् का प्रतिक होती है और उन्ही की तरह आदरणीय, पूजनीय होती है। “स्थापना निक्षेप” में और वर्णन है. देव दर्शन का प्रयोजन अरिहंत / सिद्ध भगवान् के गुणों को देखो, और उनकी अरिहंत छवि में ही अपनी त्रिकाली द्रव्य की क्षमता को याद करो, अरिहंत भगवान् से प्रेरणा लेकर अपने निज स्वाभाव को पाओ - यह मुख्य प्रयोजन हैं।

उपरोक्त कथन केवल तेरापंथी दिगंबर के सन्दर्भ में है। बाकि पंथो का मुझे ज्ञान नहीं हैं।

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चैत्य मतलब भगवान्: चैत्यालय का संधि विच्छेद करेंगे तो और ख्याल में आएगा: चैत्य + आलय।

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नव् देवताओ में चैत्य और चैत्यालय दोनों आते है
इसलिये आगम के अनुसार ही है

पण्डित बेचारदास जैन द्वारा लिखित पुस्तक जैन साहित्य में विकार के चैत्यवाद खण्ड का अंश [पूरा निबंध अवश्य ही पठनीय है ।]

  • चैत्य शब्द का प्रारंभिक अर्थ चिता पर चिना हुआ स्मारक चिन्ह था।

  • जब उस जगह मे उस स्मारक को कायम रखने के लिये या पहचान कराने के लिये पाषाणखण्ड या शिलालेख रखा जाता था तब चैत्य का अर्थ पाषाणखण्ड या शिलालेख भी हुआ।

  • जब उस स्मारक चिन्ह के बदले या उसके ऊपर किसी वृक्ष को रोपित किया जाता उस वक्त चैत्य का अर्थ वृक्ष-चैत्य वृक्ष हुवा।

  • जब उस स्मारक चिन्ह के पास यज्ञादि पवित्र क्रियाये की जाती थी उस समय चैत्य का अर्थ यज्ञ स्थान भी हुआ है।

  • जब उस स्मारक चिन्ह को देवकुलिका के आकार में बनाया जाता था उस वक्त चैत्य का अर्थ देविका (देहरी) हुआ।

  • जब उस जगह भव्य मंदिर चिना जाने लगा और उसमें मूर्तियां पधराई जाने लगी तब चैत्य का अर्थ देवालय या मूर्ति किया गया।

अभी तक चैत्य शब्द अन्वर्थ रहा। परन्तु जब चिता दाह के सिवा स्थानान्तरणों में देवालय चिने गये या उनमें मूर्तियां स्थापित की गई तब वह रूढ़ हुवा। इस प्रकार परिस्थिति के अनुसार चैत्य शब्द के अनेक अर्थ परिवर्तित हुए हैं, उन सबका मिलान करने पर साधारणत: उसके सात अर्थ होते हैं और वे इस प्रकार हैं।
१. चैत्य-चिता पर चिना हुआ स्मारक चिन्ह, चिता की राख।
२. चिता ऊपर का पाषाणखण्ड, डला या शिलालेख।
३. चिता पर का पीपल या तुलसी आदि का पवित्र वृक्ष। (देखो, मेघदूत, पूर्वमेघ श्लोक २३)।
४. चिता पर चिने हुये स्मारक के पास का यज्ञ स्थान वा होमकुण्ड।
५. चिता के ऊपर देहरी के आकार का चिनवा, स्तूप, साधारण देहरी।
६. चिता पर की पादुका वाली देहरी या चरण पादुका।
७. चिता पर का देवालय या विशालकाय मूर्ति।

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