मन के विचार और जीव के परिणामों में क्या अंतर है?

मन मनो वर्गणा रुपी पुदगल परमाणुओ से बना है, तो सुनने में आता है कि जीव के परिणामों को संभालो? यहाँ किन परिणामों को संभालने के लिए कहाँ जा रहा है?
अात्मा में तो ज्ञान दर्शन अादि गुण होते है, तो फिर परिणाम किसके होते है, जीव के या मन के ??
यदि जिनवाणी में कहि इसका उल्लेख आया है तो वह भी अवशय बताये…

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व्यवहार से परिणाम जीव के है और निश्चय से नहीं

ठीक बात है , परन्तु
मन के दो भेद हैं ।-
१.
द्रव्य मन - मनो वर्गणा से निर्मित , अष्टदल के कमल के आकार रूप ।
२.
भाव मन - जीव का परिणाम । मन-इंद्रिय आवरण कर्म का क्षयोपशम ।

यहाँ उन्ही मन के विकल्पों को संभालने की बात है , जिन्हें हम बुद्धिपूर्वक कर रहें हैं । और अबुद्धिपूर्वक भी जो विकल्प हक़ी वे भी हमारी ही कषाय-वासना के प्रतिफल स्वरूप हैं ।

परिणाम तो जीव के ही होतें हैं , क्योंकि परिणाम चारित्र गुण की पर्याय हैं । ( either with kshaay or without kshaay )

जैनेन्द्र सिद्धान्त प्रवेशिका से लेकर गोम्मटसार आदि ग्रन्थों तक सभी सिद्धान्त-विवेचक पुस्तकों में यह चर्चा मिल जाएगी ।

:arrow_up: इसकाआधार लें ।

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बहुत अच्छा समझाया आपने…

अधिक जानकारी के लिए गोम्मटसार ग्रन्थ में ‘मन’ विषय की जानकारी कहॉ पर अायी है ??