परभव सम्बन्धी भय से कैसे बचे?

बहुत लोगो को परभव सम्बंदि भय होता है कि कही हम अपने पापो के फल में नरक-पशु गति न चले जाए

  1. कृष्ण जी पश्चाताप में मरे और नरक गए
  2. धवल सेठ पश्चाताप में मरे और नरक गए
  3. सेठ ने यदयपि प्रतिज्ञा नहीं तोड़ी तो भी आर्त ध्यान से मेंढक हुए
  4. एक छुल्लक यद्यपि आजीवन छुल्लक ही थे पर मरण समय खरबूजा खाने कि इच्छा से उसी खरबूजे के अंदर कीट हुए
  5. दशानन, जिसकी भक्ति से इन्द्रो के सिंघासन कम्पित हो गए, यद्यपि उसने अपनी प्रतिज्ञा भी भंग नहीं करी, तो भी रौद्र ध्यान से नरक गए
  6. महाराजा श्रेणिक छायिक सम्यकदृष्टि होने पर भी नरक गए

जब ये लोग भले काम करके भी आर्त-रौद्र ध्यान के फल में दुर्गति गए, तो मुझे, जिसे निरंतर आर्त-रौद्र ध्यान होता है, क्या दुरगति नहीं जाऊंगा ? - यदि ऐसा भय मरण समय उतपन्न हो जावे तो निश्चित ही मरण बिगड़ जायेगा, चाहे हार्ट फेल हो, चाहे लंग्स या लिवर या कुछ भी, बिना वेदना के मरण होना तो असंभव है। ICU में रहने वालों को बाहर कि दुनिया देखने कि भी बहुत आकुलता उतपन्न हो जाती है, उन्हें हॉस्पिटल बंधी ग्रह के समान लगता है, वहां छेदन-भेदन-दुर्गन्ध आदि से भी आकुलता संभव है |

फिर जीवन भर कसाय करने पर भी कसाय से रहित, वेदना होने पर भी वेदना रहित, पापी होने पर भी पाप से रहित कैसे अनुभव करूं ? और क्या बस ऐसा अनुभव करने से वास्तव में उन पापों का फल नहीं मिलेगा ?

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मनुष्य अपने आगामी भव अपने जीवन के एक तिहाई हिस्से में आयु कर्म बांध लेता है तो फिर अंत समय के कारण आयु कर्म कैसे बंधेगे?

जब एक तिहाई में बंध लेता है तब अंतिम समय मे नही बांधता और जब एक तिहाई में नही बांधता है तब अंतिम समय मे बांधता है।आयु का बंध एक ही बार होगा।

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इतना विशेष और है कि यदि किन्हीं भी तिहाई वाले आयु बंधन के 8 अवसरों में आयु का बंधन हो जाता है, तो अन्य अवसरों में आयु की स्थिति में उत्कर्सण और अपकर्सण संभव है। परन्तु उसमें संक्रमण संभव नहीं है।
उदाहरण के लिए राजा श्रेणिक को ले लीजिए। उनको जब पहले आयु का बंध हुआ था तब 33 सागर की नरक आयु की स्थिति बंधी थी, परन्तु बाद में अपकर्षण के द्वारा वह 42 हजार वर्ष की ही रह गई थी। भले ही प्रथम आयु बंध के बाद में उनको सम्यक दर्शन प्राप्त हो गया था, परन्तु एक बार बंधी हुई नरक आयु का अन्य आयु में संक्रमण नहीं हो सकता है।

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यहाँ कथन में मुख्य भूमिका मरण समय का बताया जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि मरण समय की विशेष भूमिका है, ओर आयु कर्म मरण समय में बंधती है।
जबकि आपके उत्तर से तो प्रत्येक समय समता भाव होना चाहिए। क्योंकि 2 तिहाई के हिस्से के अलावा भी ओर चांस होते है ( जैसा मुझे समझ आया) इसलिए मरण समय की विशेष भूमिका नहीं है अपितु प्रत्येक समय की है।

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बिल्कुल बराबर समजे आप

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अणु व्रत या महा व्रत ले कर समाधि मरण की साधना करें

Sometime our queries get resolve on our own…writing here so it can be recalled whenever required.

  1. कूड़ा बीनने वाली, चपटी नाक वाली, दूसरो कि झूठन खाने वाली, सड़क पर निर्वस्त्र घूमने वाली वह स्त्री, मरकर किम्पुरुष देव कि अप्सरा हुई
  2. मदिरा पान करने वाली, मांसाभक्षण करने वाली, राजमहल को त्यागकर वेश्या बनने वाली, कुस्ट से पीड़ित वह रानी, दूर से ही मुनि को देखकर देवी हुई
  3. अनेक बालको कि हत्या कर उनका मॉस खाने वाला वह रघुवंशी राजा, स्वर्ग गया
  4. कुवारी अवस्था में ही पर पुरुष के साथ व्यभिचार करने वाली वह स्त्री, केवल एक बार मुनि का उपदेश सुनकर ही देवी हो गयी
  5. जीवन भर गृहीत मिथ्यात्व का पोषण करने वाले महात्मा बुद्ध, उसी भव में गणधर बन गए
  6. जो सिपाही राजा के साथ शिकार को निकले थे, वे केवली को प्राप्त कर स्वर्ग गए
  7. परस्त्री अपहरण करने वाला और प्रजा पे अत्याचार करने वाला वह राजा, विद्याधरों का स्वामी भामण्डल हुआ
  8. जो मुनि तप से विद्याओ को प्राप्त कर भ्रस्ट हुए थे, जो विद्याओ से नगर और अनेक स्त्रियों कि रचना कर उनमे ही मग्न हुए थे, वे श्रुतकीर्ति मुनि स्वर्ग लोक को प्राप्त हुए
  9. जिसके कारण अनेक स्त्रियों ने आत्महत्या करली, बहुत सी स्त्रियों का बलात्कार करने वाला वह राजकुमार लकुच मरकर स्वर्ग गया
  10. पहले प्रजा पे अत्याचार, फिर गरीबो से कर वसूली, फिर राजकन्या का अपहरण और फिर हत्या करने वाला वह चिलाती पुत्र सर्वार्थसिद्धि गया
  11. जिसे भैस का मॉस खाना बहुत पसंद था, वह मृगध्वज उसी भव से मुक्ति को प्राप्त हुआ
  12. जिसके गर्भ में आते ही माँ को भोग विलास करने कि चाह होने लगी, जिसने एक-एक कर 48००० विवाह किये, जिसने लोगो को यातना देने के लिए धरती पर नरक का निर्माण कराया, ऐसा राजा इन्द्र उसी भव से मुक्ति को प्राप्त हुआ
  13. वेश्या सेवन और चोरी करने वाला वह अंजन चोर उसी भव में मुक्ति को प्राप्त हुआ
  14. जिसने मुनि को कोढ़ी बोलकर समुद्र में फेख दिया था, ऐसा श्रीपाल का जीव स्वर्ग गया
  15. जिसके गर्भ में आते ही लोग मरने लगे, जिसका जन्म होते ही माँ भी मर गयी, जिसे पापोदय से सोने कि मोहरे भी जलते हुए अंगारे लगते थे, खीर मांगने पर पीट-पीट कर जिसका मुँह सुजा दिया गया, जिसे भूखा शेर खागया, ऐसा धन्यकुमार का जीव स्वर्गलोक गया
  16. जिस दरिद्र ने सिर्फ भर पेट भोजन पाने के लिए ही जिनदीक्षा ले ली थी, ऐसा नन्दिमित्र अप्सराओ के साथ विमान पर रहने वाला देव हुआ

जब ये लोग, इतने पाप करके भी दुर्गति नहीं गए फिर तुम क्यों जाओगे ? कोई जीवन के अधिकांश समय पुण्य करके भी दुर्गति गया और कोई जीवन के अधिकांश समय पाप करके भी सुगति गया, यह तो परिणामो कि विचित्रता है |

फिर जीवन भर कसाय करने पर भी कसाय से रहित, पापी होने पर भी पाप से रहित कैसे अनुभव करूं ?
यदि ऐसे ही पर्याय पे जोर रहा तो 100 कल्प में भी मुक्ति नहीं होने वाली, इसके ठीक विपरीत परिणाम का नाम सम्यक्त्व है

वेदना होने पर भी वेदना रहित कैसे अनुभव करूं ?
एक राजा संटीयों से दासी को मार रहा था पर वो दासी हस रही थी, इससे राजा को और क्रोध आ गया और वो उसे और ज्यादा मारने लगा (वह दासी राजा कि शैया को पुष्पों से सजाती हुई, झपकी लगने से उसी सइया पर सो गयी थी) जब राजा ने पूछा के तू क्यों हस रही है ? तो वो द्वेष भाव से बोली - रे राजन ! जब मैं इस सइया पर एक दिन सोई तो मुझे इतनी मार पड़ी, फिर तू तो इसपर रोज सोता है, तो तेरा क्या होगा यही सोचकर मुझे हसी आ रही है।
अब जब द्वेष भाव में इतनी ताकत है कि वह मार पड़ने पर भी हँसा सकता है, तो क्या ज्ञायक भाव में इतनी ताकत नहीं कि वो वेदना होने पर हसा सके ? ज्यादा से ज्यादा क्या होगा जब वेदना अपनी चरम सीमा पे पहुंच जाएगी तो वेदना समुदघात होगा, सो हमने निगोद में कई वेदना समुदघात देखे है जिनका अब विस्मरण हो गया है, सो पुरानी यादें ताजा हो जाएँगी और क्या पता पुरानी यादें ताजा होते होते जातिस्मरण हो जाये या सम्यक्दर्शन हो जाये, वेदना को तो जातिस्मरण और सम्यक्दर्शन में निमित्त कहा है, सो जो काम अन्य काल में नहीं हो पाया वह इस काल में हो जायेगा, इस वेदना में तो कितने मुनियो ने केवलज्ञान तक उतपन्न कर लिया है, सो यह वेदना तो हमारे लिए अच्छा निमित्त है।

और क्या बस ऐसा अनुभव करने से वास्तव में उन पापों का फल नहीं मिलेगा ?
जब तुम्हे बंध पर श्रद्धा है फिर निर्जरा पर क्यों नहीं ?

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