जीव सामान्य रूप से 8 कर्म का बंध करता है।
परंतु बाहर के संयोग कोनसे कर्म के उदय से मिलते है
(जैसे - स्त्री ,पुत्र,व्यापार,गाड़ी,आदि)
अगर हम नोकर्म कहेंगे तो यह कोनसा कर्म है 8 में से ?
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बिल्कुल सही प्रश्न है ।
● वास्तविकता में नोकर्म नाम का कोई भिन्न कर्म नही , यह वेदनीय तथा नामकर्म में ही समाहित हो जाता है ।
अघाती कर्म में ही गर्भित हो जाएगा ।
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परंतु यह कथन भी उपचार का है।क्योंकि वेदनीय जीव विपाकि प्रकृति है, और नाम कर्म शरीर आश्रित है हम बाहर के पुद्गलित संयोग की बात कर रहे है
भाईसाहब, मैं तो नोकर्म को ही उपचार कह रहा हूँ।
ये बाह्य पुद्गल संयोग ही तो है । और इनके साथ जो दूसरी वस्तुएं हैं , वे नोकर्म।
……
में इनकी बात कर रहा हूँ ।शरीर की नही
स्त्री पुत्र आदि निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध से प्राप्त होते है
वाहन आदि पुण्य से प्राप्त होते है
जी ,
● जीव विपाकी है वेदनीय कर्मप्रकृति , परन्तु जीवविपाकी कहने का प्रयोजन इतना है कि जो सुखदुःख भासित हो रहें हैं , वे जीव के ही है , उसी के परिणाम हैं ।
- जब स्त्री , पुत्रादिक की बात आएगी तो वेदनीय कर्म के संयोग से प्राप्त हुए हैं , यही कहना बनता है । और ऐसा है भी ।
संयोग = वेदनीय कर्म
शरीर की रचना = नाम कर्म
स्तिथि = आयु कर्म
तथा इनमे ,
सुख दुख की बुद्धि = मोहनीय कर्म ।
( यही सार है )