षट-गुणी हानि-वृद्धि

षट-गुणी हानि-वृद्धि के बारे में स्पष्टीकरण चाहिए ।
१. स्वरूप
२. कार्य इत्यादि ।
:pray:
@Kishan_Shah ji…

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षट गुण हानिवृद्धि = अविभागी प्रतिच्छेद का घटना बढ़ना षतगुण हानि वृद्धी है।
इसमे कारणभूत द्रव्यत्व गुण है।
अनुजीवी गुणों की ही षटगुण ह्नि वृद्धि होती है।

आचार्यो ने इसको स्वभाव अर्थ पर्याय भी कहा है।क्योंकि यह छह हो द्रव्य में विकार और स्वभाव दोनों अवस्था मे पाया जाता है।

यह सभी गुणों में होती है। सभी मे अपेक्षाएं अलग अलग है।

जैसे स्थिति बंध की अपेक्षा करे तो पल्य का असांख्यत्व भाग शेष रहने पर गुण हानि नही होती है।
अनुभाग में नियम अलग है।

अभी पंचास्तिकाय में अघुरुलघुत्व गुण की मुख्यता से बात करे

षटगुनहानी वृद्धि - अविभागी प्रतिच्छेद 【शक्ति के अंश 】का बढ़ना और घटना।इसमे षट वृद्धि होती है और षट हानि होती है।
यह पूरी प्रक्रिया 1 समय मे ही होती है।यह निरंतर स्वभाव और विभाव दोनों अवस्था मे निरंतर चलती रहती है।

षटस्थानवृद्धि - अनंतभाग वृद्धि,असंख्यात भाग वृद्धि , संख्यात भाग वृद्धि, संख्यात गुण वृद्धी, असंख्यात गुण वृद्धि, अनंत गुण वृद्धि

षटस्थान हानि - अनंत गुणहानि, असंख्यात गुणहानि, संख्यात गुणहानि, संख्यात भाग हानि,असंख्यात भागहानि , अनंत भागहानि

Example = 1 गुण - 1 लाख अविभाग प्रतिच्छेद है।
अनंत - 100
असंख्यात - 50
संख्यात - 25

द्रव्य की किसी पर्याय में 1000 अविभाग प्रतिच्छेद है।
अभी आप फ़ोटो के ऊपर से आप समझ सकते है।

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धन्यवाद , विषय रोचक है ।
इसके सम्बन्ध में और अधिक पढ़ने को कहा मिलेगा ?
:pray:

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पंचास्तिकाय गाथा - 84,
जीवकाण्ड - 322 गाथा से
धवला पुस्तक - 6,12
जैनेन्द्र सिद्धांत कोष,

In this video After 35 min

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यह कोन सी पुस्तक है?

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यह पूरी प्रक्रिया 1 समय मे कैसे होती है?

जिस तरह उत्पाद व्यय ध्रौव्य एक ही समय मे होती है उसी तरह समजना

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इसके सम्बन्ध में भिन्न मत हैं कुछ का कहना है कि पूरी प्रक्रिया 1 समय मे होती है, तो कुछ 6 समय में भी मानते हैं।

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फिर तो एक समय के भी टुकड़े करने पड़ेंगे?

नही कर सकते

क्योंकि जिस समय व्यय हो रही है उस समय उतपन्न क्यों नही हो रही उतपन्न होने का काम क्यों नही हो रहा है?

जैसे अंधेरा जिस समय जाएगा उसी समय उजाला आएगा दोनों का समय अलग नही हो सकता।

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पंचास्तिकाय और प्रवचनसार दोनों का इसमें भिन्न मत है। उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य प्रत्येक पर्याय के धर्म हैं।

1 समय के अनन्त तुकडे ह्यो सकते हैं, काल से नहीं भाव से।

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6 समय का कहां पढ़ने मिलेगा?

षट गुणी हानि वृद्धि में कारणभूत कहीं द्रव्यत्व गुण को और कहीं अगुरुलघुत्व गुण को कहने की क्या अपेक्षा हो सकती है?

तथा यह मात्र अनुजीवी गुणों में ही होती है और यह सभी गुणों में होती है, ये दोनों भिन्न-भिन्न कथन किस-किस अपेक्षा से किये गए हैं?

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द्रव्यत्व गुण - द्रव्य का अनुसूचक होने से वह सभी गुणों का संग्राहक है। आप कोई भी गुण ले लें उसकी नित्यता द्रव्यत्व गुण का ही विषय है और उसकी परिणमनशीलता से उसकी परिभाषा/विशेष स्वरूप रखा जाता है।

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