षट्कारक और समवाय में समानता एवं अंतर कहाँ?

षट्कारक (कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, अधिकरण) और समवाय (स्वभाव, निमित्त, पुरुषार्थ, काललब्धि, भवितव्य) में क्या अंतर है? कहने का आशय है की दोनों में मुख्य प्रयोजन क्या है?

मेरी समझ में जो आया है वो बताने की कोशिश करी है, कृपया समाधान करें, या अगर समझ में गलती हो तो सुधार करें।

कारक: कार्य और कारण दोनों शामिल है। इसलिए द्रव्य का पूर्ण स्वभाव (जिसमें परिणमन शामिल है) बताता है।

समवाय: केवल कारण शामिल है। कार्य नहीं। इसलिए समवाय परिणमन के कारणों का वर्णन करता है।

क्या यह समझ सही है? कृपया प्रकाश डालें।

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प्रश्न बहुत उत्तम है ! :clap:
स्पष्टीकरण करने में तो मैं समर्थ नही , परन्तु आपने जो निष्कर्ष प्रेषित किया है , उसमे एक बात कहना चाहूँगा ।-

भवितव्यता स्वयं कार्य रूप है , तो यह कहना कि ये मात्र कारण रूप है , ऐसा कहना नही बनता ।

समाधान का अभिनंदन करता हूँ ।:pray:

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बात सही है. क्या हम यह कह सकते है की समवाय में ज़्यादा ज़ोर कारण पर है और कारक में पूर्ण द्रव्य स्वभाव पर?

हाँ , कह सकते हैं ।
अथवा मैं इसे ऐसा कहना चाहूंगा कि समवाय process को मुख्य करके बात करता है , तथा
कारक स्वतंत्रता को मुख्य करके बात कहतें हैं

● समवाय का प्रयोजन कारकों कों बताना है ।
● कारक का प्रयोजन कार्य के प्रयोजन आदि तत्वों को बताना है ।

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