केवलज्ञान होने के बाद जीव शुभ अशुभ भाव से रहित है।
यहाँ पर औदायिक भाव मे योग की अपेक्षा लेना है।जैसे
- किसी केवली की दिव्यध्वनि पृथक्त्व वर्ष तक खीरी और किसी की हजारों सालों तक खीरी
- किसी का विहार ज्यादा हुआ किसी का कम हुआ
- किसीको समुदघात हुआ किसीको नही हुआ ।
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दण्डकपाठ ?
दण्ड-कपाट*
औदयिक *
I’m just correcting spellings , because there happens to be a complete different term, just at a matra change. For eg
अगम्य आगम्य (आकर)
दिन दीन
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thanks