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सामान्य कथन में इन तीनों का वाच्य एक ही है।
यम और नियम में जरूर अंतर किया गया है -
नियमः परिमितकालो यावज्जीवं यमो ध्रियते
- आचार्य समंतभद्र, रत्नकरण्ड श्रावकाचार, श्लोक 87
काल की मर्यादा लेकर त्याग करने को नियम कहा है, तथा जब तक देह में जीवन है तब तक त्याग करने को यम कहा जाता है।
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प्रतिज्ञा -
संयम अंश जगयो जहाँ, भोग अरुचि परिणाम ।
उदय प्रतिज्ञा को भयो , प्रतिमा ताको नाम ।
- नाटक समयसार ।
अर्थात जहाँ प्रतिमाओं से संबंध जुड़ जाता है, वहाँ प्रतिज्ञा संज्ञा उपयुक्त है, तथा नियम तो सामान्य त्याग को कहा ही है ।
- नियम की अपेक्षा प्रतिज्ञा में दृढ़ता ज्यादा है ।
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आखडी के अनेक अर्थ ध्यान आतें हैं ।-
- अन्य धर्मों में एक प्रकार की प्रतिज्ञा , जिसमे खड़े रहकर तपस्या करने का नियम पालना होता था ।
- श्वेताम्बरों में जब गुरु दीक्षा देते है, तब जो दीक्षा स्वीकार करने का पाठ होता है, उसको भी आखडी कहा जाता है ।
- मुनिराज जो आहार से पहले अटपटी प्रतिज्ञा लेते हैं, जिसे आगम में वृत्तिपरिसङ्ख्यान तप संज्ञा प्राप्त है, उसे भी आखडी कहा जाता है ।
प्रस्तुत प्रकरण में 2nd point को मुख्य किया जाना चाहिए ।
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