श्रुतज्ञान का स्वरूप

जो श्रुत केवली है, उन्हें श्रुत का पूरा ज्ञान है। तो क्या इसका यह मतलब ह कि श्रुतकेवलि को श्रुत ज्ञानवारण कर्म का क्षय है ? अगर क्षय नहीं तो क्ष्योपक्षम है , पर क्षयोपशम मे देश्घाती स्पर्धक का उदय है । अगर ऐसा है तो पूर्ण श्रुत ज्ञान केसे?

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प्रश्न बहुत सुंदर है ।
देशघाती स्पर्धकों का उदय व्यर्थ नही ।
श्रुतज्ञान स्वयमेव ही इस बात को दर्शा रहा है कि यह क्षयोपशम रूप अवस्था ही है । वर्तमानकालीन देशघाती स्पर्धकों का उदय क्षायिक अवस्था नही होने में निमित्त बन रहे हैं ।
प्रश्न हो सकता है कि तो फिर केवलज्ञानावरण सर्वघाति प्रकृति का कार्य क्या है ?
तो वह तो मुख्य रूप से क्षायिक ज्ञान न होने में ही निमित्त बनती है , देशघाती को जो हम क्षायिक अवस्था प्राप्त न होने में निमित्त कह रहे है , इसे उपचार समझ लेना , मुख्यतः तो क्षयोपशम अवस्था है इस बात का ही द्योतन इन स्पर्धकों के माध्यम से हो रहा है ।

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I just want to ask ये क्षयोपशम है➡️ देशघाती स्पर्धक का उदय➡️श्रुत ज्ञानी का ज्ञान पूर्ण (द्वादशांग का ज्ञान) श्रुत ज्ञान कैसे कहा जा सकता है?

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श्रुतज्ञान में जो पूर्णता वाली बात है , उसे यदि उत्कृष्टता से लगाएं , तो समझ आ जायेगा । वह पूर्ण होकर भी कार्यकारी नही है ।
मैं इतनी ही बात कह रहा हूँ कि पूर्ण हो चाहे अल्प , श्रुतज्ञान स्वयम में ही इस बात का परिचायक है कि वह क्षायिक ज्ञान नही । और देशघाति प्रकृति उसी बात को दर्शाने में सहायक है ।

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