जैन धर्म मे मन औऱ आत्मा का तो स्थान है, उनका कार्य भी प्रतिपादित है, किन्तु मस्तिष्क का क्या कार्य है ( जैन धर्म के अनुसार ) ? विज्ञान जगत में हमारे मतिज्ञान का कार्य मस्तिष्क द्वारा मान्य है, क्या जैन धर्म मे भी इसे कोई स्थान दिया गया है/ प्रक्रिया बताई गई है?
जैन धर्म में मस्तिष्क कोई स्वतन्त्र इन्द्रिय नहीं है सर्वोंग से ही ज्ञान होता है वाकि अंगों की तरह मस्तिष्क भी शरीर का एक अंग है बस सब अंगों में यह सर्वोत्कृष्ट अंग माना जाता है
क्या हम इस मान सकते है , जैसे घ्राण इंद्रिय के ज्ञान में नासिका निमित्त है वैसे ही इन्द्रियों के साथ ज्ञान के लिए मस्तिष्क भी एक निमित्त है?
विज्ञान भी मस्तिष्क को ही इंद्रियों द्वारा ज्ञान ग्रहण करने के लिए मुख्य स्रोत मानता है।
जैन धर्म की अपेक्षा क्या कोई स्थान/ क्रिया विशेष इसे प्रदान है अथवा प्रदान की जा सकती है?
किन्तु विज्ञान तो सिद्ध कर चुका है कि ज्ञान का संचार मस्तिष्क के माध्यम से ही होता है। अथवा ऐसा कहें कि मस्तिष्क ही ज्ञान है।
सामान्य रूप से कहें तो यदि कोई प्रश्न है जो सभी को परेशान करता रहा है वह यह है -
How on earth could this piece of pallid whitish-grey matter (skull), even if it were fully functioning and connected to the rest of a living human being, be responsible for the amazing technicolour dreamcoat of consciousness?
- K. T. Maslin (2001), An Introduction to the Philosophy of Mind, p. 4
इस प्रश्न ने सभी को - philosophers, biologists, neuroscientists, psychologists, linguists, computer scientists (AI) परेशान किया है ।
उपर्युक्त दोनों बातें सही तो है, किन्तु कथञ्चित्, सर्वथा नहीं ।
जैनदर्शन के संदर्भ में -
मस्तिष्क, मेद, ओज, शुक्र - चारों एक एक अंजलि प्रमाण है । (1033)
- जैनेन्द्र सिद्धांत कोश, भाग 1, पृ. 472