यदि 63 शलाका पुरुष सम्यक्त्व से ही बंधते हैं तो त्रिपृष्ठ नारायण का पद महावीर के जीव को सम्यग्दर्शन से पूर्व कैसे?
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भगवान महावीर ने विश्वनन्दी राजा के भव में सम्यक दर्शन प्राप्त कर लिया था और मुनि दीक्षा भी धारण की थी किन्तु निदान बन्ध के कारण सम्यक त्व छोड़ त्रिपृष्ठ नारायण बने और मरकर सातवें नरक गये, किन्तु शेर की पर्याय में सम्यक त्व पुनः प्राप्त किया उसके बाद फिर कभी नहीं छूटा इसलिए शेर की पर्याय में सम्यक त्व को ज्यादा महत्व दिया जाता है।
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बहुत बहुत धन्यवाद!
तो क्या यह नियम कि 63 शलाका पुरुष, सम्यक्त्व पूर्वक ही बनते हैं। - अबाधित माना जाए? (वैसे ऐसा नियम किस ग्रन्थ में मिलता है?)
कृपया आगम उद्धरण स्पष्ट करें…
अध्याय, सूत्र, आदि
अध्याय- 3 सूत्र नं०27 पेज नं० 437
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