औप्समिक सम्यक्त्व कैसे होता है अनादि मिथ्यादृष्टि की अपेछा और सादी मिथ्यादृष्टि की अपेक्छा
अनादि मिथ्यादृष्टि के सम्यग दर्शन में मुख्यता किस की है वाह्य निमित्त की या अंतरंग निमित्त की
मोहनीय की 28 प्रकृति है।
उसमे 3 दर्शनमोहनीय की है जो जीव का श्रद्धा गुण का परिणमन में निमित है।
25 चारित्र मोहनीय की है।
सम्यकदर्शन श्रद्धा गुण के साथ सम्बंध रखता है।
अनादि मिथ्यद्रष्टि को दर्शनमोहनीय में केवल मिथ्यत्व प्रकृति ही होती है।परंतु जब जीव पुरुषार्थ करके दर्शनमोह और अनंतानुबंधि का उपशम करता है तब उसे उपशम सम्यक्त्व होता है।और दर्शनमोह के तीन टुकड़े हो जाते है।
- मिथ्यात्व
- सम्यक्मिथ्यात्व
- सम्यक प्रकृति
उपशम सम्यक्त्व का काल अंतरः मुहर्त होता है।
उसके बाद में पुरुषार्थ के अभाव से मिथ्यात्व का उदय हो तो सादी मिथ्यद्रष्टि
सम्यक्मिथ्यात्व का उदय हो तो 3 गुणस्थान में आता है ।
सम्यकप्रकृति का उड़द तो क्षयोपशम सम्यकदृष्टि।
सादी मिथ्यद्रष्टि को उपशम सम्यक्त्व हो सकता है जब दर्शन मोहनीय के तीन टुकड़े एक मिथ्यत्व रूप हो जाते है तब उसे उपशम सम्यक्त्व हो सकता है।परंतु यह काल बहुत लंबा है।
अधिक में क्या कहूँ आप गुणस्थान विवेचन या तत्वज्ञान विवेचिका - 2 में गुणस्थान प्रकान में आप पढ़ सकते है।
क्या तत्व ज्ञान बिवेचिका की पी डी फ मिल सकती है
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