तीर्थंकर भगवान की दिव्य ध्वनि ख़िर ने में गण धर की क्या भूमिका है और क्या नियम है
क्योकि भगवान आदिनाथ की वाणी बिना गण धर के हुई थी और भगवान महावीर स्वामी की बिना गण धर के नहीं खिरी थी
वीरवर्धमान चारित्र में ऐसा आया है कि प्रथम दिव्य ध्वनि गणधर बनने की योग्यता रखने वाले व्यक्ति की उपस्थिति में होती है मतलब अव्रती अवस्था में उपस्थित रहते हैं इसी ग्रंथ में लिखा है कि दिव्य ध्वनि को सुनकर बाद में उन्होंने दीक्षा ली उसी प्रकार जब आदिनाथ भगवान की प्रथम वाणीखिरी तो गणधर वहाँ अव्रत अवस्था में उपस्थित थे ऐसा आदि पुराण में आया है
अतः दोनों तीर्थंकर की वाणी गणधर की उपस्थिति में ही प्रारम्भ हुई
- कोष्ठ बुद्धि ऋद्धि
- बीज बुद्धि ऋद्धि
- पदानुसारि बुद्धि ऋद्धि
- सम्भिन्नसंश्रोत्रि बुद्धि ऋद्धि
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एक प्रमाण पद - 32 अक्षरों का
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एक मध्यम पद - 16 सौ 34 करोड़ 84 लाख 7 हज़ार 888 अक्षरों का
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जिनवाणी के कुल मध्यम पद- 1 सौ 12 करोड़ 83 लाख 58 हज़ार 5 मध्यम पद कुल जिनवाणी में हैं।
प्रश्न - 1 अक्षोहिणी सेना का प्रमाण कितना होता है?
यह ऋद्धि सामान्य मुनिगण को भी हो सकती है।
प्रश्न - फिर गणधर की ऋद्धि में विशेष क्या रहा?
उत्तर - 4 अक्षोहिणी सेना संख्यात = भाषा दिव्यध्वनि में खिरती है। और इतनी भाषा का ज्ञान गणधर करते हैं। यह उनकी ऋद्धि की विशेषता है।
प्रश्न - गणधर के अभाव के दिव्यध्वनि क्यों नहीं खिरती?
उत्तर - चूँकि तीर्थंकर की दिव्यध्वनि बीज पद रूप होती है अतः उसे झेलने के लिए भी बीज बुद्धि ऋद्धि धारक जीव की आवश्यकता है। चूँकि यह बुद्धि गणधरों के पास ही होती है अतः उनके अभाव के दिव्यध्वनि भी नहीं खिरती।
प्रश्न - क्या पहली बार की दिव्यध्वनि में ही गणधर द्वादशांग की रचना कर लेते हैं? यदि हाँ तो, वे दिन में 4 बार दिव्यध्वनि क्यों सुनते हैं एवं उत्कृष्ट 8 वर्ष कम 1 कोड़ा कोड़ी वर्ष तक क्यों सुनते हैं?
उत्तर - वे रचना पहली बार की ही दिव्यध्वनि में ही कर लेते हैं किंतु दिव्यध्वनि में द्वादशांग के अतिरिक्त भी विशेष चर्चा होती है। साथ ही साथ प्रश्न और उत्तर सीधे कोई तीर्थंकर से नहीं किए जाते, यह कार्य भी गणधर की ऋद्धि के माध्यम से ही सम्भव हो पाता है।
प्रश्न - यदि कोष्ठ बुद्धि का अभाव माने तो?
उत्तर - अवस्थान के बिना उत्पन्न हुए श्रुतज्ञान के विनाश का प्रसंग आएगा।
प्रश्न- यदि बीज बुद्धि का अभाव मानें तो?
उत्तर - तो तीर्थंकर के मुख से निकले हुए अकसर और अनक्षर स्वरूप बीजपदों का ज्ञान न हो से द्वादशांग के अभाव आ प्रसंग आएगा।
प्रश्न - यदि सम्भिन्नसंश्रोत्रि ऋद्धि का अभाव मानें तो?
उत्तर - उसके बिना उभयात्मक 700 कुभाषा और 18 भाषा रूप व प्रतीक क्षण में भिन्न भिन्न भाव कि प्राप्त होने वाली दिव्यध्वनि के ग्रहण होने से द्वादशांग की उत्पत्ति के अभाव का प्रसंग आएगा।
सम्पूर्ण वर्णन का मूल आधार धवला भाग 9, पेज क्रमांक 52-60 है।