पञ्च भाव में संज्ञा को क्यों नहीं लिया गया है
पंच भाव ‘आत्मा के / जीव के स्वतत्त्व अर्थात् स्वभाव हैं और संज्ञा आहारादि विषयों की अभिलाषा है कर्म बंध का कारण है न कि जीव के स्वतत्व चारों ही संज्ञाएँ बाह्य पदार्थों के संसर्ग से उत्पन्न होती हैं इसलिए इनका बंध कारणमे अंतर्भाव होगा। प्रत्येक पदार्थ के निरुपाधिक तथा त्रिकाली स्वभाव को उसका पारिणामिक भाव कहा जाता है। भले ही अन्य पदाथो के संयोग की उपाधिवश द्रव्य अशुद्ध प्रतिभासित होता हो, पर इस अचलित स्वभाव से वह कभी च्युत नहीं होता, अन्यथा जीव घट बन जाये और घट जीव। मेरे द्वारा त्रुटियाँ रह गई हो तो उन्हें ठीक कर मेरा मार्ग दर्शन कर अनुग्रहित करने की कृपा करे!
भाव की जानकारी के अभावमें जीवका स्वरूप ज्ञात नहीं हो सकता
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