जीवत्व की पहचान में उपयोग का स्थान

आपकी जिज्ञासा सही है, ज्ञप्ति परिवर्तन है तो एक ज्ञेय पर लक्ष किस प्रकार रहे?

परंतु यह बात अनुभवगोचर अनुभवकाल में भी नहीं हो रही इसलिये एक आत्मा ध्येय से ध्यान टूटूता नहीं। ज्ञप्तिपरिवर्तन केवली गम्य है।

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इस पर काफ़ी विचार किया है। मुझे ऐसा भासित होता है की त्रिकाली द्रव्य एक abstract concept है जिसका भान करना पड़ेगा। जैसे अगर स्वर्ण की बात करे तो चाहे कंगन हो चाहे माला चाहे अंगूठी हो चाहे biscuit हो, वो है स्वर्ण ही। वो हमारी दृष्टि पर dependent है कि हम एक कंगन को स्वर्ण रूप की बहुमूल्य चीज़ देखते है या फिर कंगन की कारीगरी और ख़ूबसूरती पर नज़र रखते है। लेकिन फिर भी, अगर उस कंगन को या biscuit को स्वर्ण रूप ही देखे तब भी उसे द्रव्य-पर्याय सहित ही देखेंगे। त्रिकाली “स्वर्ण” ऐसी कोई physical वस्तु नहीं है। वो हमेशा पर्याय के साथ रहेगी ही। हमारा लक्ष्य स्वर्ण की बहुमूलता पर रहेगा तो उस कंगन की value है, वरना कारीगरी तो नक़ली धातु की भी कर सकते है।

वैसे ही त्रिकाली द्रव्य भी एक abstract concept है जो चाहे कोई पर्याय हो, उस वस्तु के स्वभाव में कोई अंतर नहीं होता, उससे defined है। जैसे स्वर्ण चाहे किसी भी पर्याय में हो, उसकी बहुमूलता पर लक्ष्य प्रयोजनवान है, वैसे ही आत्मा किसी भी पर्याय में हो, लक्ष्य उसके ज्ञान स्वभाव पर होना चाहिए।

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आपके चिंतन की अनुमोदना करते है। Abstract concept शब्द प्रयोग को छोड़ कर चिंतन का सार तो सही है। क्योंकि आत्मा कोई भी पर्यायरूप परिणमित हो, उसका ज्ञान स्वभाव मुख्य लक्षण है। और वहीं प्रयोजन से दृस्टि का विषय करने योग्य है।

आपने कहा कि

  • इसमें थोड़ा सा सुधार कर रहे है।

अगर उस कंगन या बिस्कुट को स्वर्णरूप ही देखे तब उसमें कंगन या बिस्कुटरूप होते हुए भी शुद्धनय उसे लक्ष नहीं करते हुए (भिन्न नहीं, गौण करते हुए) उस समय के लिए केवल सुवर्णरूप पर ही लक्ष करते हुए उसी का ज्ञान करता है। और निर्विकल्प होते ही प्रमाण का जन्म होने से वस्तु के भेद(पर्याय) अभेद(द्रव्य) सभी रूप का निर्विकल्प रूपसे जानना होता है।

यहां आपने व्यंजन पर्याय का द्रष्टांत दिया है इसलिए इसतरह से उत्तर दिया है। वास्तव में उसी तरह अर्थ पर्याय की भिन्नता नहीं गौणता समझना होगा। व्यंजन पर्याय (आकार) तो छद्मस्थ के ज्ञान का विषय नहीं बनता।

Concrete things are consider as object in real world. While abstract is defined as just an idea or a concept.

So from that perspective dravya is concrete. Though its not प्रत्यक्ष and thus we feel it as if its abstract. And gyan is अनुभवगोचर so we feel it as concrete.

I suggest to make an attempt to understand without those not so truely fitting words. Coz it might endup creating more confusion.

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बहुत बहुत आभार!

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