स्वछंदता किसे कहा जाए

किसी भी विषय में स्वछंदता ग्रहण करना कब और क्यों कहलाता है, एवं क्या कोई पैमाना निश्चित किया जा सकता है कि जिससे ये पता लगाया जा सके कि अमुख व्यक्ति स्वछंद हो रहा है ?

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आगम के विरुद्ध कोई भी कार्य स्वछंदता की श्रेणी में आता है

किसी भी वचन का उद्देश्य न समझकर मात्र स्वार्थपूर्ति हेतु अपने मतानुसार उसका अर्थ ग्रहण करना स्वच्छंदता है।
जैसे देर रात कोई movie देखकर घर लौटे और माँ बोले कि ― ‘जाओ जाओ, एक show और देख आओ’ और यदि वह बोले कि ― ‘ठीक है, पैसे देदो’ यह स्वच्छंदता है क्योंकि उसने माँ के कथन का उद्देश्य नहीं समझा। माँ के ‘जाओ जाओ’ कहने में भी ‘कहीं मत जाओ’ गर्भित था परंतु उस व्यक्ति ने अपने मतानुसार उस वचन का अर्थ निकाला।
जैनागम अनेकांत और स्याद्वाद से सुसज्जित है, परंतु जो नयों की अपेक्षा नहीं समझता वो स्वच्छंद हो जाता है। जैसे, आत्मानुभव की मुख्यता बताने के लिए ज्ञानी के भोगों को भी निर्जरा का कारण कहा। इससे यदि कोई व्यक्ति भोगों में प्रवर्तन करने लगे तो टोडरमल जी के शब्दों में कहा जाए तो ― ‘उनके अभाग्य की महिमा हमसे नहीं कही जा सकती’।
स्वच्छंदता का कोई निश्चित पैमाना नहीं हो सकता। क्योंकि जो जितने उल्टे अर्थ एक वचन से निकाल ले उतने प्रकार की स्वच्छंदता हो सकती है। इसलिए किसी भी वचन को समझने के लिए उसका उद्देश्य व उसकी अपेक्षा समझना अत्यावश्यक है।
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Although there is a silver-toned difference between them but there lies an intention-based rational difference.

स्वच्छन्दता के जैन दर्शन में अनेक आयाम -

  1. अनन्तानुबन्धी रूप अविरति
  2. अप्रत्याख्यानावरण रूप अविरति
  3. प्रत्याख्यान रूप प्रमाद
  4. संज्वलन रूप कषाय

(स्वच्छन्दता = दोष पूर्ण दशा)

स्वतन्त्रता के जैन दर्शन में अनेक आयाम -

  1. अन्याय-अनीति-अभक्ष्य आदि के त्याग रूप सम्यक्श्रद्धान
  2. देशसंयम पालन रूप सम्यक्श्रद्धान
  3. सकल-संयम पालन रूप सम्यक्श्रद्धान
  4. निष्कषाय रूप सम्यक्श्रद्धान
  5. प्रत्येक पदार्थ की स्वतन्त्रता रूप प्रत्यक्ष अनुभूत्यात्मक सम्यक्श्रद्धान

(स्वतन्त्रता = निर्दोषमयी दशा)

Its highly note-worthy that they can lie in the same person in similar quantiles but with different intentions.

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