निगोद ,करणानुयोग संबंधित

निगोदिया जीव ने ऐसा कौन सा अपराध किया कि वह आज तक निगोद से निकला ही नहीं ?

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That’s absolutely thought-provoking but we just have to agree with it. अनादि से अनंत काल तक ऐसा ही रहेगा और यदि ऐसा ना माने तो अनेक प्रश्न तथा दोष उत्पन्न होंगे (which are again unanswerable).

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जैसे सोना हमेसा से पाषाण के रूप में ही पाया जाता है, ऐसे जीव हमेसा से ही निगोद में ।
वास्तव में जीव का कोई अपराध है ही नहीं क्योंकि कर्म अनादि से ही है, इसलिए मैं कसाई नहीं हूँ, मैं अपराधी नहीं हूँ, यह सब विभाव मेरा स्वरूप नहीं है, मुझे जबरन ही अशुभ भाव होते है, इसलिए हे जिनदेव आप मुझमे अवगुण न देखो, मुझे भी अपने समान निर्दोष बना दो क्योंकि मैं आपही की जाती का हूँ।

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तो फिर हम संसार में क्यों हैं,यदि हमारा कोई अपराध है ही नहीं,ये विभाव मुझे जबरन हो रहे है, तो हमारी गलती ही क्या है जो हम इस संसार में हैं

बिल्कुल आपकी कोई गलती नहीं है। लेकिन यह द्रव्यानुयोग की दृष्टि से ठीक है। समवशरण में द्रव्यानुयोग का प्रश्न सबसे आखरी में आता है।

आपको stage by stage स्वाध्याय करना चाहिए। पहले संसार के मायाजाल को समझें, बारह भावनायें भाएं, मोक्ष की इच्छा रखें, चरणानुयोग का पालन करें - जीव हिंसा से बचें (Stage 1) ,

यह सब करने के बाद आप यह सोचे कि मैं इस जीव को नहीं बचा रहा वह अपने आयु कर्म से ही जीता है और अपने सुख दुख स्वयं के कर्मों के द्वारा पाता है , अकर्ता हो जाएं , साक्षी भाव लाएं, मोक्ष की इच्छा भी छोड़ दें, आदि (Stage 2)।

Stage 1 को jump करके सीधा stage 2 पर चले जाएंगे तो आपका संसार कभी नहीं छूटेगा। आप जीव को मारते हुए सोचेंगे कि मैं जीव को नहीं मार रहा। लेकिन हमको जीव को बचाते हुए यह सोचना है कि मैं जीव को नहीं बचा रहा।

केवली भगवान ने हमारा सारा भविष्य देखा है लेकिन केवली भगवान ने गोमटसार कर्मकांड ( गाथा ८८२) और पंचसंग्रह की गाथा में नियतिवाद को मिथ्यात्व भी बताया है। (नियतिवाद मतलब जो जहां जब जैसा जिस निमित्त से आदि पंचसमवाय पूर्वक ही)।

भले ही नियति / क्रमबद्धपर्याय सही हो, लेकिन स्वच्छंदी होकर उसको मानना एकांत मिथ्यात्व (नियतिवाद) ही है।

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Can you give an argument please

Just a correction, saying व्यवहार as stage1 and निश्चय as stage2 is not correct, saying निश्चय as stahe1 and व्यवहार as stage2 is also not correct. These both goes together.

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सब बातें एक साथ एक बार में नहीं कहीं जा सकती इसलिए बताया एक एक करके जाता है पर श्रद्धान एक साथ किया जाता है

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From चारित्र चक्रवर्ती page 182

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