1)जैन ग्रँथों में अन्यमति पूजनीय के उदाहरण क्यो दिए जाते है? यदि महापुरुष या स्वर्ग के देवों के रूप में जैन पुराणों में कही उल्लेख हो तो ठीक है। परंतु यदि नहीं है तो इस प्रकार की तुलना कहा तक सही है।?
क्योंकि मोक्ष मार्ग प्रकाशक में सभी अन्यमति मान्यताओं का खंडन किया है।
•नहीं, ब्रह्मा का वैसा नहीं है। वह कथन मात्र है, जैसे- दैनिक जीवन में हम भी प्रयोग करते हैं।
•दूसरी बात यह काव्य का प्रयोग है; क्योंकि अन्यमत में स्वयं ऐसा कहा है कि-
ब्रह्मा ने माया को बनाया है, फिर माया ने आगे के जगत की उत्त्पति
की है; वह कथन मात्र ही है।
विष्णु के सम्बन्ध में विशेष ज्ञात नहीं है; कुछ कह नहीं सकता हूँ।
प्रथमानुयोगमें जो मूल कथाएँ हैं; वे तो जैसी हैं, वैसी ही निरूपित करते हैं। तथा उनमें प्रसंगो का व्याख्यान होता है; वह कोई तो ज्योंका त्यों होता है, कोई ग्रन्थकर्ताके विचारानुसार होता है; परन्तु प्रयोजन अन्यथा नहीं होता।
उदाहरणः —
जैसे – तीर्थंकर देवोंके कल्याणकोंमें इन्द्र आये, यह कथा तो सत्य है। तथा इन्द्रने स्तुतिकी, उसका व्याख्यान किया; सो इन्द्रने तो अन्य प्रकारसे ही स्तुति की थी और यहाँ ग्रन्थकर्ताने अन्य ही प्रकारसे स्तुति करना लिखा है; परन्तु स्तुतिरूप प्रयोजन अन्यथा नहीं हुआ।
तथा परस्पर किन्हींके वचनालाप हुआ; वहाँ उनके तो अन्य प्रकार ही अक्षर निकले थे, यहाँ ग्रन्थकर्ताने अन्य प्रकार कहे; परन्तु प्रयोजन एक ही दिखलाते हैं।
यहाँ कोई कहे – अयथार्थ कहना तो जैन-शास्त्रमें सम्भव नहीं है?
अयथार्थ तो उसका नाम है जो प्रयोजन अन्य का अन्य प्रगट करे। जैसे – किसीसे कहा कि तू ऐसा कहना, उसने वे ही अक्षर तो नहीं कहे, परन्तु उसी प्रयोजन सहित अन्य अक्षर कहे, तो उसे मिथ्यावादी नहीं कहते |
वहाँ प्रयोजन अन्यथा नहीं हुआ इसलिये अयथार्थ नहीं कहते। इसीप्रकार अन्यत्र जानना।
So it depends on ग्रन्थकर्ता how they elaborate the प्रसंग, but if प्रयोजन अन्यथा नहीं हुआ, then its fine.
षड्दर्शनसमुच्चय ग्रंथ के लेखक आचार्य हरिभद्रसूरि जी हैं। स्वध्याय करने से आपको काफी सहजता होगी व शंकाओं के समाधान मिलेंगे। मेरे फ़ोन से ग्रंथ के फोटो नहीं भेज पाता कुछ टेक्नीकल समस्या है अन्यथा में कुछ पृष्ठ भेजता।