सामान्य जैन कुलाचार

आज एक बहुत ही विकट समस्या उत्पन्न हो गई है। आज जैन कुलाचार का पालन करना भी मुश्किल हो जाता है। मैं विशेष तौर पर जैन युवाओं की बात कर रहा हूँ। क्योंकि जब मैं अपने ही जैनी मित्रों की स्थिति देखता हूं तो बहुत पीड़ा होती है। आजकल जैनियों के बच्चे Trend के नाम पर शराब का सेवन करते, वे अपने शील धर्म की भी रक्षा नहीं कर पा रहे।जब घर से बाहर अध्ययन के लिए जाते तो जिनधर्म को भी भूल जाते। यह परिस्थिति बहुत ही खतरनाक हो गई है। मेरे कुछ प्रश्न हैं।
विशेष कर वे युवा जो Study, jobs, और Business के Purpose से बाहर है।

  1. अगर जैन मंदिर पास ना हो तो नित्य जिनमंदिर के नियम को कैसे निभाऐं?
  2. रात्रिभोज त्याग और जमींकन्द के नियम को कैसे निभाऐं?
  3. अपने शील की रक्षा कैसे हो ?
  4. आजकल कई जैन युवा भी Trend के नाम पर शराब का सेवन करते हैं, जो आज के समय में common हो गया है।
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मुझे लगता है कि अगर बचपन से संस्कार दिए जाएं तो फिर वयस्क होने पर भटकने की संभावना कम होती है। पाठशाला भेजना, प्रवचन में जाना यह सब ज़रूरी है ताकि बच्चे तर्क सहित समझें कि क्या गलत, क्या सही है।

  1. अगर मंदिर पास में न हो तो ऑनलाइन सुविधाएं बहुत हैं। जिन दर्शन, स्वाध्याय हो सकता है।
  2. अगर शहरों में शुद्ध खान पान भोजनालय उपस्थित करवाया जा सके समाज द्वारा तो आसान है।
    1. शायद पाठशाला और प्रवचन द्वारा मिले संस्कार ये सब से बचने में सहायक हो।
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ऑनलाइन स्वधाय पर जोर दिया जाना चहिये
जैन wathsup ग्रुप और fasebook पर जैन gurp से जोड़े

आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है।
यदि किसी जैनी को इनकी आवश्यकता प्रतीत होती है तो वह किसी न किसी उपाय का आविष्कार कर ही लेता है… नियमों को पालने का।

और रही बात आवश्यकता/रुचि पैदा करने की तो इसका सीधा सम्बन्ध संस्कारों से है।

There is a topic in psychology called personality traits… So, he/she should know their set of personality traits or the influencers should know how to identify the personality of the person and accordingly there can be a way to have a peaceful jain lifestyle.

If they are logically driven - they should be directed towards such scriptures, if they are very active then they should be encouraged and supported to take over social welfare activities, if they are veracious readers then they should be given aagamik scriptures, likewise on and forth.

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आज हालत ऐसी है कि कोई हॉटेल या बाजार का भोजन न करता हो और पानी छानकर पिता हो उसको लोग बहोत बड़ा व्रती समझते है।जब कि ये तो जैनी मात्र को सहज में ही होना चाहिए।जो ये क्रिया करता है उसको कई बार कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है,लोगो के ताने भी सुनने पड़ते है।कई बार गृहस्थ में इस मुद्दे को लेकर कषाये भी हो जाती है।लेकिन फिर भी हमे अपने नियम पर अडिग रहना चाहिए, लोगो की बात की बातों के सामने मौन रहना चाहिए।

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