मिथ्या दर्शन और मिथ्याज्ञान

क्या मिथ्यादर्शन और मिथ्याज्ञान का अभाव एक समय पर ही होता है!?
यदि हाँ तो दर्शन को पहले और ज्ञान को बाद में लेने का क्या कारण है?

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मिथ्यादर्शन यह आत्मा का श्रद्धा गुण की पर्याय है और ज्ञान के पहले जो दर्शन होता है वह आत्मा का दर्शन गुण है जो ज्ञान होने से पहले लब्ध रूप में होता है। दोनों आत्मा के भिन्न गुण है।

श्रद्धा गुण की निर्मल पर्याय - क्षायिक सम्यकदर्शन
दर्शन गुण की निर्मल पर्याय - केवलदर्शन
सिद्धो को केवल दर्शन और केवलज्ञान एक समय पर होते है।

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उत्तर 1. इन दोनों अशुद्ध पर्यायों का एक समय में अभाव होता है; क्योंकि सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान साथ में होते हैं।

उत्तर 2. दर्शन (श्रद्धा) गुण कारण है और ज्ञान कार्य। जहाँ श्रद्धा कार्य कर चुकती है वहीं जीव का ज्ञान प्रवृत्त होता है।

दोनों उत्तरों हेतु -
सम्यक कारन जान, ज्ञान कारज है सोई।
युगपत होते हु, प्रकाश दीपकतें होई।।

  • छहढाला चतुर्थ ढाल 1 छन्द
    (बिल्कुल ऐसा ही वर्णन सर्वार्थसिद्धि ग्रन्थराज में भी किया गया है।)
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