डॉ. वीरसागर जी के लेख

2. जैन धर्म में स्वच्छता की अवधारणा :arrow_up:

स्वच्छता आज का एक ज्वलंत विषय है | भारत सरकार के निर्देशों पर आज सर्वत्र बड़े ही व्यापक स्तर पर स्वच्छता अभियान चल रहा है | विचारणीय है कि स्वच्छता के सम्बन्ध में जैन धर्म क्या कहता है|
वैसे तो सभी चिंतकों की तरह जैन चिंतक भी स्वच्छता को सभी दृष्टियों से बहुत अच्छा कहते-मानते हैं, गंदगी रखने और फ़ैलाने को किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहते-मानते हैं | गंदगी का कथमपि कोई पक्ष जैन चिंतक भी नहीं लेते | जैन चिंतक तो बल्कि स्वच्छता पर कुछ ज्यादा ही जोर देते हैं | जैनों की स्वच्छता या शुद्धता की बातें विश्वप्रसिद्ध हैं | जैन घरों में आज भी जो स्वच्छता-शुद्धता दिखाई देती है, वह अन्यत्र दुर्लभ ही है | तथापि स्वच्छता के सम्बन्ध में जैन चिंतकों की एक बात बहुत ही महत्त्वपूर्ण है, एकदम अनूठी है; जिसकी ओर प्राय: लोगों का ध्यान नहीं जाता; अत: आज मैं यहाँ उसी को विशेष रूप से स्पष्ट करना चाहता हूँ | स्वच्छता अभियान से जुड़े हुए सभी लोगों को इस बात की ओर गम्भीरतापूर्वक ध्यान देना चाहिए | इस बात को समझे और अपनाये बिना हमारा स्वच्छता अभियान कभी सफल नहीं हो सकता |
जैन चिंतकों की वह खास बात संक्षेप में यह है कि हमें ‘सफाई करो’ की बजाय ‘सफाई रखो’ की नीति को प्रोत्साहित करना चाहिए | यद्यपि यह बात देखने में एक-सी ही लग रही है, किन्तु गहराई से देखा जाए तो दोनों बातों में बड़ा भारी अंतर है | कैसे – यही यहाँ स्पष्ट किया जा रहा है |
जैन धर्म अहिंसावादी धर्म है | उसका कहना है कि सफाई करने से भी सूक्ष्म जीवों की हिंसा होती है, अत: हमें सफाई करने के बाद प्रायश्चित्त लेना चाहिए, जैसा कि ‘आलोचना-पाठ’ में कहा है –
‘‘झाड़ू ले जांगा बुहारी | चींटी आदिक जीव विदारी ||’’
इसी प्रकार के विचार अन्यत्र भी अनेक स्थानों पर अनेक जैन आचार्यों ने प्रकट किये हैं | इनसे ज्ञात होता है कि जैन धर्म झाड़ू आदि से सफाई करने को अच्छा कार्य नहीं मानता है, अपितु उसकी गणना पापकार्यों में ही करता है और उसका प्रायश्चित्त लेने का विधान भी बनाता है | किन्तु इसका अर्थ यह नहीं समझना चाहिए कि जैन धर्म गंदगी का पक्षधर है | जैन धर्म गंदगी का किंचित् भी पक्षधर नहीं है – यह बात हम ऊपर भलीभांति स्पष्ट कर चुके हैं |
दरअसल, बात यह है कि जैन आचार्य ‘सफाई रखो’ – यह तो कहते हैं, किन्तु ‘सफाई करो’ – यह नहीं कहते हैं | ‘गंदगी मत फैलाओ’ – यह तो कहते हैं, किन्तु ‘झाड़ू आदि से सफाई करके हिंसात्मक कार्य करो’ – यह नहीं कह रहे हैं | तथा उनका यही चिन्तन यहाँ बहुत महत्त्वपूर्ण है, जो बड़े ध्यान से समझने योग्य है | सफाई रखना और सफाई करना – दोनों बातों में बड़ा अंतर है|
जैन आचार्यों के ये विचार ऊपर से देखने पर किसी को कुछ अटपटे-से लग सकते हैं, किन्तु यदि गम्भीरतापूर्वक चिन्तन किया जाए तो बड़े ही काम के सिद्ध होते हैं, क्योंकि इन्हीं से हमारी समस्या समूल समाप्त होगी | जैन आचार्यों के ये विचार स्वच्छता अभियान को सफल बनाने के लिए बड़े ही काम के हैं, अत्यंत मौलिक एवं अर्थपूर्ण हैं | इनमें बड़ा रहस्य छुपा हुआ है | इसके द्वारा जैन आचार्य कहना यह चाहते हैं कि हमारी जीवन-शैली ऐसी होनी चाहिए कि कूड़ा फैले ही नहीं, क्योंकि यदि कूड़ा उत्पन्न होगा तो वह कहीं-न-कहीं तो रहेगा ही और उससे वातावरण भी गंदा होगा ही |
आज हम देख रहे हैं कि हम अपने घर या कार्यालय को तो जैसे-तैसे स्वच्छ कर लेते हैं, परन्तु वहाँ से जो कूड़ा निकलता है, उससे बड़े-बड़े कूड़े के पहाड़ खड़े हो जाते हैं | उनमें से अनेक दुर्गन्धित गैसें निकलती रहती हैं और नाना प्रकार की भयंकर समस्याएँ खड़ी होती रहती हैं | वर्तमान में दिल्ली को ही देख लीजिए, यहाँ भिलस्वा और गाजीपुर में तो दो बड़े-बड़े कूड़े के पहाड़ बन ही गये हैं, सरकार ने अभी-अभी दो और स्थान इस कार्य के लिए आवंटित कर दिए हैं | समझ में नहीं आ रहा कि ऐसा कब तक किया जा सकेगा | अभी से ही सारी धरती और सारा आकाश कूड़े से भरता जा रहा है | आगे क्या होगा ? हमारा स्वच्छता अभियान इस विधि से कैसे सफल होगा?
यही कारण है कि आज हमें जैन आचार्यों के इस उपदेश पर ध्यान देना होगा कि ‘सफाई करो, सफाई करो’ – चिल्लाने की बजाय ‘कूड़ा मत पैदा करो, गंदगी मत फैलाओ’ – कहा जाए और साथ में यह भी कहा जाए कि जो अधिक/खतरनाक कूड़ा फैलाएगा उसे प्रायश्चित्त/दंड का भागी बनना होगा|
हम देखते हैं कि प्राचीन काल में भी हमारे देश में प्राय: सर्वत्र ऐसा ही था, प्रथम तो कूड़ा पैदा ही नहीं होता था और जो कुछ होता था तो उसका अन्य उपयोग हो जाता था; पर आज हमारी जीवनशैली बहुत खराब हो गई है और हम विकास, पैकिंग, लुकिंग आदि के नाम पर बहुत अधिक एवं बड़े ही खतरनाक कूड़े का उत्पादन कर रहे हैं | विचारणीय है कि हम इतने सारे एवं खतरनाक कूड़े का नाश कैसे करेंगे? अत: यदि हमें अपने स्वच्छता अभियान को सफल बनाना है तो उन सब कार्यों को हतोत्साहित करना होगा, जिनसे अधिक/खतरनाक कूड़ा फैलता है, गन्दगी फैलती है|
यद्यपि यह सम्भव नहीं है कि कूड़ा बिलकुल ही न पैदा हो; होगा, अवश्य होगा और हमें उसकी सफाई भी अवश्य करनी ही होगी, अन्यथा अधिक गंदगी फैलेगी; परन्तु फिर भी सफाई करने की बजाय सफाई रखने वाली अवधारणा को हमें बहुत अधिक प्रोत्साहित करना होगा, तभी हमारा स्वच्छता अभियान सही अर्थों में सफल होगा | यूँ ही विकास के नाम पर विनाश की आँधी चलाना उचित नहीं है|
सफाई कैसे रखी जाए अथवा गंदगी कैसे कम फैले – इस विषय पर भी जैन आचार्यों का मार्गदर्शन बहुत महत्त्वपूर्ण है | इस सम्बन्ध में उन्होंने अनेक उपाय बताये हैं | यथा –
  1. आरम्भ कार्य (जैसे- पृथ्वी खोदना, पानी फैलाना, अग्नि जलाना, वायु को बाधित करना, पेड़-पौधों को नुकसान पहुंचाना) कम से कम किये जाएँ | ‘आरम्भ’ जैनदर्शन का एक विशेष पारिभाषिक शब्द है | जिन कार्यों से सूक्ष्म जीवों को पीड़ा पहुंचे उन्हें आरम्भ कहते हैं | बहुत आरम्भकार्य करने से बहुत गंदगी फैलती है |
  2. परिग्रह कम से कम इकट्ठा किया जाए | अनावश्यक परिग्रह इकट्ठा करने से बहुत गंदगी फैलती है | अनावश्यक वस्तुएं काम नहीं आ पातीं, खराब हो जाती हैं |
  3. शुद्ध सात्त्विक शाकाहारी भोजन किया जाए | भोजन की कच्ची, पक्की सारी सामग्री अत्यंत सीमित मात्रा में एवं अत्यंत सावधानी से रखी जाए | भोजन वेस्ट न किया जाए |
  4. नदियों को पवित्र रखा जाए | उनमें घुसकर स्नान, धोवन आदि न किया जाए |
    इसी प्रकार के और भी अनेक उपाय बताए हैं | यदि हम सब इन उपायों पर गम्भीरतापूर्वक ध्यान दें तो सहज ही गंदगी कम फैलेगी और हमारा ‘स्वच्छ भारत अभियान’ पूर्ण सफल होगा|

> सफाई रखना जरूरी है | सफाई करना मजबूरी है ||

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