डॉ. वीरसागर जी के लेख

19. लघु कथा - मनमानी या जिनवाणी :arrow_up:

प्राचीन काल की बात है | एक आदमी कहीं दूर जा रहा था | मार्ग में थकान दूर करने के लिए वह एक वृक्ष की छाया में रुका | संयोग से वह वृक्ष एक कल्पवृक्ष था | शीघ्र ही उसकी थकान उतर गई| वह बहुत प्रसन्न हो गया और सोचने लगा- काश, एक गिलास पानी भी मिल जाता | तत्काल पानी सामने हाजिर हो गया | पानी पीते हुए सोचने लगा- काश, खाने के लिए एक लड्डू भी साथ होता | अब लड्डू भी प्लेट में उपस्थित हो गया | उसने लड्डू खाकर पानी पी लिया, परन्तु सोचने लगा कि सुबह से भूखा हूँ, एक लड्डू से क्या होता है, पूरा भोजन ही मिलता तो तृप्ति होती | अब भोजन की थाली सजकर सामने आ गई | उसने पेट भरकर भोजन कर लिया | भोजन करके सोचा- काश, यहाँ एक बिस्तर भी लगा होता तो मैं जरा देर लेट भी जाता, भोजन के तुरंत बाद मुझसे चला कैसे जाएगा | अब बिस्तर लग गया और वह उस पर लेट गया | लेटकर वह सोचता है- अरे, यह क्या हो रहा है, मैंने सोचा- पानी तो पानी हाजिर हो गया, मैंने सोचा- लड्डू तो लड्डू हाजिर हो गया, मैंने सोचा- भोजन तो भोजन हाजिर हो गया, मैंने सोचा- बिस्तर तो बिस्तर हाजिर हो गया, यहाँ कहीं कोई भूत तो नहीं है ? इतने में ही एक भूत प्रकट हो गया | उसने सोचा- अरे, यह तो सचमुच भूत ही है, कहीं मुझे खा तो नहीं जाएगा | अब भूत उसे खा गया |
कहानी का तात्पर्य यही है कि जो मन के पीछे चलेगा, मनमानी करेगा, वह नष्ट हो जाएगा और जो जिनवाणी की सुनेगा वह तर जाएगा |

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