डॉ. वीरसागर जी के लेख

18. व्यस्त रहो स्वस्थ रहो / जो व्यस्त है वह स्वस्थ है:arrow_up:

एक किसान था | बहुत ही कठोर परिश्रमी, दिन-रात काम में लगे रहने वाला | उसे कभी भी अपने कामों से थोड़ी-सी भी फुर्सत नहीं मिलती थी, बहुत ही व्यस्त रहता था; लेकिन उसकी एक विशेषता थी कि वह नित्य थोड़ी देर पूजा-पाठ अवश्य करता था | कितना भी व्यस्त हो, पर पूजा नहीं छोड़ता था | उसकी ऐसी धर्मनिष्ठा देखकर एक दिन एक देव प्रगट हुआ | बोला- “मैं तुम्हारी धर्मनिष्ठा से बहुत प्रभावित हूँ, कुछ वरदान मांगो |”
किसान बोला– “मुझे कुछ भी नहीं चाहिए, मेरे पास कुछ भोगने का समय ही नहीं है |”
देव ने बहुत आग्रह किया- “कुछ-न-कुछ तो अवश्य ले लो, मुझे बहुत प्रसन्नता होगी |”
किसान- “ठीक है, यदि तुम कुछ देना ही चाहते हो तो तुम मुझे एक अच्छा-सा कार्यकर्ता दे दो, क्योंकि मेरे पास काम बहुत है |”
“तथास्तु” - कहकर देव ने किसान को एक बहुत ही अच्छा कार्यकर्ता दे दिया |
किसान ने अब अपने कार्यकर्ता को बहुत काम बताना शुरू किया – “जाओ जल्दी खेत के चारों ओर बाड़ लगाओ |”
कार्यकर्ता तो अलौकिक था, एकदम जादुई, पूरा राक्षस | अत: शीघ्र गया और कुछ ही क्षण में लौटकर आ गया – “आपका काम पूरा हो गया है मेरे आका, अब जल्दी और काम बताइए, अन्यथा मैं आपको खा जाऊंगा |”
किसान – “खेत के चारों कोनों पर चार कुँए खोदो सिंचाई के लिए |”
कार्यकर्ता राक्षस पुन: शीघ्र गया और कुछ ही क्षणों में लौटकर वापिस आ गया – “आपका काम पूरा हो गया है मेरे आका, अब जल्दी और काम बताइए, अन्यथा मैं आपको खा जाऊंगा |”
किसान जो भी काम बताता, उसे वह राक्षस इसीप्रकार शीघ्र भलीभांति सम्पन्न करके आ जाता था | किसान उसके कार्यों से तो प्रसन्न था, किन्तु वह जो ऐसा बोलता था कि मैं आपको खा जाऊंगा, उससे बहुत डरता था, अत: उसने एक दिन उस देव का आह्वान किया जिसने उसे वह राक्षस कार्यकर्ता वरदानस्वरूप प्रदान किया था |
देव प्रकट हुआ – “कैसे हो भक्तप्रवर ? कैसा है हमारा कार्यकर्ता ?कोई समस्या तो नहीं ?”
किसान – “कार्यकर्ता तो निश्चय ही बहुत अच्छा है, शीघ्र एवं भलीभांति सब कार्य सम्पन्न करता है, किन्तु …”
“किन्तु क्या ?”
“किन्तु हे देवराज, वह बारम्बार मुझे खा जाने की धमकी देता है |”
“देखो, यदि उसे खाली छोड़ोगे तो ऐसा ही होगा | तुमने कहा था कि तुम्हारे पास बहुत काम है, अत: मैंने तुम्हें बहुत काम करने वाला उत्कृष्ट कार्यकर्ता दिया | उसे हमेशा काम में लगाये रखा करो, फिर तुम्हें कभी कोई परेशानी नहीं होगी |”
“मगर इतना काम अब मैं उसके लिए कहाँ से लाऊं ?”
“देखो, पहले उससे कहना कि सौ फुट गहरा गड्डा खोदो, गड्डा खुदने के बाद कहना कि कहीं से एक हजार फुट लम्बा बांस ढूँढ़ कर लाओ और उसे इसमें गाड़ दो | अब, जब तुम्हें काम हो तब उससे काम करा लेना और जब कोई काम न हो तब उससे कहना कि इस बांस पर चढो और उतरो, जब तक मैं आवाज न दूँ तब तक न आना | अथवा एक हजार बार गिनकर चढो और उतरो, एक भी कम-ज्यादा नहीं होना चाहिए | इत्यादि-इत्यादि, परन्तु उसे कभी भी खाली मत छोड़ना, खाली छोड़ोगे तो वह तुम्हें खा जाएगा |”
किसान ने ऐसा ही किया और सुखी हो गया |
किन्तु अब हमारी बात है | हमारे पास भी एक उत्कृष्ट कार्यकर्ता है – हमारा मन | हम उससे बहुत काम ले सकते हैं, किन्तु लेना आना चाहिए | हमें उससे अच्छे काम कराने होंगे और येन-केन प्रकारेण उसे व्यस्त भी अवश्य रखना होगा, बिलकुल भी खाली नहीं छोड़ना होगा, अन्यथा वह हमें खा भी जाएगा – यह सच है | लोकोक्ति में भी जो ऐसा कहा जाता है कि खाली दिमाग शैतान का घर है, वह बहुत ही अनुभव की और अत्यंत सारगर्भित बात है, हमें इसे गम्भीरता से लेना चाहिए | यदि कदाचित् हमारे पास कोई बहुत अच्छे प्रयोजनभूत कार्य न हों तो भी हमें उसे किसी-न-किसी छोटे-मोटे कलात्मक कार्यों में ही उसको लगा देना चाहिए, पर इसे व्यस्त अवश्य ही रखना चाहिए | जो व्यस्त है वही स्वस्थ है | हमारे पूर्वजों ने मन को व्यस्त रखने के लिए ही नानाविध शास्त्रों एवं कलाओं का प्रणयन किया है, उन्हें अप्रयोजनभूत नहीं समझना चाहिए |

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