डॉ. वीरसागर जी के लेख

17. जैन संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन में पत्र-पत्रिकाओं का योगदान :arrow_up:

जैन संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन में जैन पत्र-पत्रिकाओं का बहुत बड़ा योगदान है | पहले भी बहुत रहा है, आज भी बहुत है और आगे भी बहुत रहेगा | आज आवश्यकता है कि इस तथ्य को हम सभी और हमारी समाज का हर सदस्य भलीभांति समझे, ताकि जैन संस्कृति का क्षरण रुके और संरक्षण-संवर्धन हो |
जैन संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन में पत्र-पत्रिकाओं के विशेष योगदान को भलीभांति समझकर प्रत्येक जैन बन्धु को जैन पत्र-पत्रिकाओं को बहुत अधिक प्रोत्साहित करना चाहिए | उनके सदस्य स्वयं भी बनना चाहिए और दूसरों को भी बनाना चाहिए अथवा अन्य किसी उपलक्ष्य में भी उनको कुछ आर्थिक सहयोग अवश्य करना चाहिए | उनका यह सहयोग उनका अपना हित तो करेगा ही, इससे जैन संस्कृति की महती सेवा भी होगी | मैं समझता हूँ कि प्रत्येक जैन घर में चार-पांच पत्रिकाएँ अवश्य ही आनी चाहिए |
आजकल बहुत से लोग अनेक प्रकार के बहाने बनाकर पत्र-पत्रिकाओं से दूरियां बनाते देखे जा रहे हैं, उनकी सदस्यता छोड़ रहे हैं, आदि; परन्तु यह अच्छी स्थिति नहीं है | उन्हें बात को ठीक से समझना चाहिए | जैसे कोई कहता है कि उनकी अविनय होती है इसलिए नहीं मंगाते| यह बात ऊपर से देखने पर ठीक लगती है, परन्तु वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है | ऐसे ही अविनय नहीं होती है | अविनय तो अविनय करने से होती है, व्यर्थ ही आतंकित होना उचित नहीं है | संसार में लाखों पत्रिकाएँ छपती हैं, सब में महापुरुषों के चित्र एवं विचार होते हैं, परन्तु इससे उनकी अविनय नहीं होती, अपितु उनका प्रचार-प्रसार होता है, उनका महत्त्व बढ़ता है |

बहरहाल, यहाँ हम यह समझने का प्रयास करते हैं कि जैन संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन में जैन पत्र-पत्रिकाओं का कैसे बहुत बड़ा योगदान होता है | बातें तो बहुत हैं, पर हम संक्षेप में लिख रहे हैं | आशा है, सब लोग इन बिन्दुओं को विस्तृत करके गम्भीरता से समझने-समझाने का प्रयास करेंगे | यथा-

  1. पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से समाज में नये-नये कवि, लेखक एवं साहित्यकार तैयार होते हैं | जरा सोचिए, पत्र-पत्रिकाएँ न हों तो नये साहित्यकार कैसे तैयार होंगे ?
  2. पत्र-पत्रिकाओं से तीर्थों का विकास होता है, उनकी अद्यतन जानकारी प्राप्त होती है, उन पर कोई संकट आया हो तो उसकी रक्षा होती है |
  3. पत्र-पत्रिकाओं से बच्चों में धार्मिक संस्कार डलते हैं | वे आधुनिक ढंग से आकर्षक रूप में छपती हैं, उनमें अनेक प्रेरक प्रसंग आदि छपते हैं | उनसे बच्चों में बहुत संस्कार डलते हैं | मेरा अपना अनुभव है कि मुझे स्वयं बचपन में सन्मति-संदेश, आत्मधर्म आदि घर आते थे, उनको पढकर ही धर्म की रुचि जागृत हुई |
  4. पत्र-पत्रिकाओं से समकालीन मिथ्या मान्यताओं का निराकरण होता है | यह कार्य केवल प्राचीन ग्रन्थों से सम्भव नहीं है | तथा यदि यह कार्य न किया जाए तो हमारे अनेक सामान्य लोग अपनी संस्कृति से भ्रष्ट हो सकते हैं |
  5. पुस्तक समीक्षा से नई पुस्तकों/कृतियों का परिष्कार होता है | आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने इसी के द्वारा हिन्दी-साहित्य को अनेक श्रेष्ठ ग्रंथ और ग्रन्थकार दिए |
  6. पत्र-पत्रिकाओं से धर्मप्रभावना आदि के समाचार पढ़कर बहुत प्रभावना होती है | एक स्थान के उत्तम कार्यों को जानकर अन्य स्थान वाले भी वैसा ही श्रेष्ठ कार्य करने के लिए प्रेरित होते हैं |
  7. पत्र-पत्रिकाओं से संस्थाएं उन्नति करती हैं, क्योंकि वे प्राय: किसी-न-किसी संस्था का मुखपत्र होती हैं | उसमें उनकी गतिविधियाँ प्रकाशित होना आवश्यक होता है |
  8. पत्र-पत्रिकाओं से कोई भी अच्छा जन-जागरण-अभियान चलाने में सहायता प्राप्त होती है | भगवान महावीर का 2500वाँ निर्वाण महोत्सव, आचार्य कुन्दकुन्द द्विसहस्राब्दी आदि अनेक कार्यक्रम पत्र-पत्रिकाओं की वजह से ही सफलतापूर्वक सम्पन्न हुए |
  9. जैन संस्कृति केवल धर्म-दर्शन-अध्यात्मरूप नहीं है, अपितु न्याय, व्याकरण, गणित, ज्योतिष, वास्तु, कला, समाज, राजनीति आदि जीवन के सभी पक्षों से सम्बंधित है | पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से जैन संस्कृति की इस विविधता और व्यापकता पर अच्छा प्रकाश डाला जा सकता है |
  10. आजकल विश्वविद्यालयों में बहुत शोधकार्य हो रहे हैं | यह पत्र-पत्रिकाओं का ही योगदान है कि वे उन शोधकार्यों से हमें परिचित कराती हैं | शोधार्थियों के शोध पत्र प्रकाशित करती हैं और इससे शोधकार्यों को प्रोत्साहन प्राप्त होता है |
  11. पत्र-पत्रिकाओं से सामाजिक एकता का भी वातावरण बनता है | पत्रकार बिना किसी भेदभाव के सभी के प्रेरक समाचारों से पाठकों को अवगत कराते हैं | इससे समाज के सभी अंग एक-दूसरे के निकट आते हैं, उनमें स्नेहभाव बढ़ता है |

इस प्रकार हम देखते हैं कि जैन संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन में जैन पत्र-पत्रिकाओं का बहुत बड़ा योगदान होता है | प्रत्येक जैन बन्धु का यह पावन कर्तव्य बनता है कि वह इन्हें प्रोत्साहित करे |

पत्रकार बन्धुओं से भी निवेदन है कि यद्यपि वे बहुत कठोर परिश्रम करते हैं, तथापि निम्नलिखित बातों का और भी अधिक ध्यान रखें | यथा –

  1. सम्पादकीय अवश्य लिखा करें, बिना सम्पादकीय के अच्छा नहीं लगता, समसामयिक विषयों पर आपके अमूल्य विचार जनता के समक्ष अवश्य आने चाहिए | यदि किसी समसामयिक विषय पर न लिखें तो अन्य किसी सांस्कृतिक विषय पर ही सही, पर अवश्य लिखना चाहिए |
  2. पत्रिका में ‘पुस्तक-समीक्षा’ का स्तम्भ भी अवश्य होना चाहिए, इससे साहित्य समृद्ध होता है | तथा ‘पुस्तक-समीक्षा’ में वास्तव में ही कुछ समीक्षा (गुण-दोष-विवेचन) भी अवश्य करनी चाहिए, केवल पुस्तक का परिचय मात्र लिख देने से कोई लाभ नहीं होता |
  3. कहीं पर भी अभक्ष्य वस्तुओं के सेवन का कोई उपदेश या विज्ञापन भी नहीं देना चाहिए | कहीं-कहीं ‘स्वास्थ्य-रक्षा’ आदि स्तम्भों में गाजर, मूली, लहसुन, यहाँ तक कि शहद आदि के सेवन की सलाह दी जाती है | इससे बहुत दोष लगता है |
  4. अधिक से अधिक समाचार कवर करें, चाहे संक्षेप में ही सही | दिगम्बर-श्वेताम्बर दोनों के प्रेरक समाचारों से जनता को अवगत कराया जाए तो यह भी अच्छा ही है | इससे समाज में स्वस्थ स्पर्द्धा एवं स्नेह भाव विकसित होता है |
  5. वर्ष के अंत में समाज के विविध क्षेत्रों में कार्य करने वालों का सर्वेक्षण करके ‘टॉप टेन’ प्रकाशित करना चाहिए | जैसे - ‘इस वर्ष के टॉप टेन लेखक’ | यहाँ ‘लेखक’ के स्थान पर विद्वान्, कृतियाँ, दातार, संस्थान, समाजसेवक, पत्रिका, तीर्थ, तीर्थयात्री, इत्यादि | यह भी समाज की प्रगति का हेतु बनेगा |
  6. यदा-कदा प्राचीन जैन स्थलों ( मन्दिर, मूर्ति, तीर्थ, आदि ) से भी पाठकों को अवश्य परिचित करना चाहिए | ये हमारी अमूल्य धरोहर हैं | चर्चा करते रहने से लुप्त नहीं होंगी |
  7. कभी-कभी प्राकृत भाषा के उत्थान हेतु भी कुछ सामग्री प्रकाशित करना चाहिए, क्योंकि यह हमारे आगमों की मूल भाषा है | खासकर श्रुत पंचमी के अवसर पर तो अवश्य ही प्राकृत भाषा का महत्त्व समझाकर जनता को उसे सीखने की प्रेरणा देनी चाहिए | आपका यह कदम जैन संस्कृति की रक्षा में बहुत बड़ा योगदान करेगा |

अन्त में सभी जैन पत्र-पत्रिकाएँ उन्नति करें और उनके निमित्त से जैन संस्कृति का निरंतर संरक्षण-संवर्धन होता रहे- इसी मंगल कामना से मैं अपनी बात पूर्ण करता हूँ |

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