भारत मूलतः एक आध्यात्मिक देश है, क्योंकि यहाँ जीवन के हर क्षेत्र में अध्यात्मविद्या को सर्वोपरि स्थान दिया गया है | यथा-
- यहाँ अध्यात्मविद्या अर्थात् आत्मविद्या को ही विद्या कहा गया है | यथा- विद्या वही है जो मुक्ति प्रदान करे – ‘सा विद्या या विमुक्तये’ | अथवा – ‘आत्मज्ञान ही ज्ञान है, शेष सभी अज्ञान’ |
- ज्ञानी भी उसे ही माना गया है जो आत्मा को जानता है, भले ही और कुछ नहीं जानता हो |
- अज्ञानी भी उसे ही माना गया है जो आत्मा को नहीं जानता है, भले ही और सब कुछ जानता हो | जो आत्मा को नहीं जानता,वह सकल शास्त्रों का ज्ञाता होते हुए भी अज्ञानी है |
- गुरु भी उसे ही माना गया है जो आत्मज्ञान कराए |
- शिष्य भी उसे ही माना गया है जिसे आत्मा की जिज्ञासा हो |
- कवि भी उसे ही माना गया है जो अध्यात्मवेत्ता हो- ‘अनन्तमव्ययं कविम्’अथवा ‘कविर्मनीषी परिभू: स्वयम्भूर्याथातथ्यातोsर्थान्…’ ईशावास्योपनिषद् 8 |
- लेखक भी उसे ही माना गया है जो आत्मज्ञान का वर्णन करे |
- होली, दिवाली आदि सभी पर्वों की व्याख्या आध्यात्मिक की गई है |
- लेखन,उपदेश आदि कार्य भी अपने ही लिए किये जाते हैं , दूसरे के लिए नहीं |स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा |
- सर्वत्र बहिरंग क्रिया की बजाय अन्तरंग भावों को महत्त्व दिया गया है |
- धर्म मस्जिद मन्दिर में नहीं, अपने अंदर में है –ऐसा सभी ने बार-बार कहा है |
- आत्मा ही उत्तम तीर्थ है |(रयणत्तयसंजुत्तो जीवो वि हवदि उत्तमं तित्थं – कर्तिकेयानुप्रेक्षा )
- आत्मज्ञान ही लक्ष्य है, बाकी सब उपलक्ष्य है |
- वीर/पुरुष– इनका अर्थ भी यहाँ आध्यात्मिक किया गया है |
- दुर्बल/नपुंसक- इनका अर्थ भी यहाँ आध्यात्मिक किया गया है |
- अंधा वही है, जिसके पास ज्ञान चक्षु नहीं है |(उरलोचन जिनके मुंदे ते आंधे निर्मूल )
- इसी प्रकार गूंगा, बहरा आदि भी समझ लेना चाहिए |
- बालक/वृद्ध- इनका अर्थ भी यहाँ आध्यात्मिक किया गया है |
- दुर्लभ/ सुलभ- इनका अर्थ भी यहाँ आध्यात्मिक किया गया है |
- अंधकार प्रकाश- इनका अर्थ भी यहाँ आध्यात्मिक किया गया है |
- उन्नति अवनति- इनका अर्थ भी यहाँ आध्यात्मिक किया गया है |
- सोना/जगना- इनका अर्थ भी यहाँ आध्यात्मिक किया गया है |
- ज्योतिष गणित आदि सभी विद्याओं का पर्यवसान यहाँ अध्यात्म में ही होता है |