'मेरे अवगुण न चितारो, प्रभु अपनो विरद सम्हारो।'

इस पंक्ति का अर्थ क्या है?

My two cents. Feel free to rectify.

हे प्रभु ! मेरे दोषों को मत देखो। मुझे अपना भक्त (विरद) समझो।

Direct link to आलोचना पाठ.

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मेरे अवगुण न देखो, अपने यश, कीर्ति, बड़ा और सुन्दर नाम(विरद) संभारो

मतलब, मेरे में तो अवगुन हे, लेकिन वो न देखते आप ने जो इतने लोगो को तारा हे वो आपकी यश , कीर्ति को संभारो और इस अवगुणी को भी तारो।

Correct me if I misunderstood.

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मैंने ये पंक्ति का अर्थ 1 ब्रह्मचारी दीदी से पूछा था, उन्होंने निम्न अर्थ बताया था -
हे भगवन! मेरे में अनन्त दोष है, अनंत अवगुण है जिनका बखान मैं कर चुका (पूरे आलोचना पाठ में) हूँ। आप वो सब पे ध्यान न देकर, अपने में लीन रहे क्योंकि मेरे दोषों की तो कोई सीमा है नही।

Please rectify me, if I am wrong.

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@Mitali_Jain What do you mean by विरद?

This word - as per Prabhu Patit Pawan Stuti - is “भक्त”

Is it same here?

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In the stuti 'Prabhu patit pawan ’ as well as in Alochana path, the word ‘विरद’ means vishalata, baddapan.

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विरद का अर्थ Google पर search करने पर “बड़ा और सुंदर नाम” दिख रहा है।
दोनों संदर्भों में विरद को लगाने पर निम्न अर्थ प्रतिभासित होता है:

"यों विरद आप निहार स्वामी, मेट जामन मरण जी"
अर्थात् हे प्रभु! आपका बड़ा नाम सुनकर में आपके पास आया हूँ, अतः आप मेरे जन्म मरण का अभाव करने की कृपा करिये।

"मेरे अवगुण न चितारो, प्रभु अपनो विरद सम्हारो।
सब दोष रहित कर स्वामी, दुख मेटहु अंतर्यामी ।।"
अर्थात् हे स्वामी! मेरे अवगुणों की ओर दृष्टि न करते हुए आप अपने बड़े नाम के अनुरूप कार्य करिये। तथा मुझे समस्त दोषों से रहित करके मेरे दुख का अभाव करिये।

विशेष, विद्वानों से पूछ कर लिखने का प्रयास करें।

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