प्रस्तुत दोहे का अर्थ - सम्यग्ज्ञान चन्द्रिका पीठिका मंगलाचरण

सम्यकज्ञान चंद्रिका पीठिका के प्रारंभ में दिए हुए मंगलाचरण का अर्थ ज्ञात हो तो बतावें।
कठिन शब्दों के शब्दार्थ भी लिखें, जिससे समझने में सरलता हो।

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मैं नेमिचन्द* को नमस्कार करता हूँ, जो ज्ञान-आनन्द को करनेवाले हैं, गुणों के कंद (समूह) हैं, माधव (कृष्ण नारायण) के द्वारा वन्दित हैं, विमल पद प्राप्त हैं, पुण्य-रूपी समुद्र हैं और आनंद के धाम हैं या (भव्य जीवों के) पुण्य रूपी समुद्र को उत्पन्न करने वाले हैं।।1।।

जो दोषों का दहन करनेवाले हैं, अनन्त गुणों के घन हैं, शत्रुओं का नाश करनेवाले हैं, स्वानुभूतिरूपी रमणी में ही रमते हैं, जगत के नायक हैं, वे अरहन्त जयवन्त हों।।2।।

मैं सिद्धों को नमन करता हूँ, जो शुद्ध हैं, सहज हैं, साधना के फल को प्राप्त हैं, आत्म-रस (आत्मानुभव) रूपी अमृत-रस को धारण करनेवाले हैं, समयसार (शुद्धात्मा) हैं, मुक्त हैं, सर्वज्ञ हैं, सुख को करनेवाले हैं।।3।।

जो अनेक प्रकार से विश्व के प्रमाण का वर्णन करती है, स्याद्वाद से मुद्रित है, अहित को हरने वाली है, वह जिनवाणी सबका कल्याण करे।।4।।

मैं ज्ञान और ध्यानरूपी धन में लीन रहने वाले, काम और अभिमान से रहित, मेघ के समान धर्मोपदेश की वर्षा करने वाले, पाप रहित, क्षीण कषाय, नग्न दिगंबर जैन साधुओं को नमस्कार करता हूँ।।5।।

जैसे भानु के उद्योत से अंधकार का नाश होता है, उसीप्रकार ऐसा मंगल करने से सर्व प्रकार का मंगल होता है और सर्व उदंगल (अमंगल) दूर होते हैं।।6।।

*‘नेमीचन्द’ शब्द के तकरीबन 10 अर्थ सम्यग्ज्ञान-चन्द्रिका में दिए गए हैं, जो कि यहाँ भी घटित होते हैं। :pray:

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कई जगह गोमट सार आदि ग्रंथों के रचयिता नेमिचंद सिद्धांत चक्रवर्ती ऐसा आता है और कई जगह नेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती ऐसा,
तथा द्रव्यसंग्रह के रचयिता के संदर्भ में भी कई जगह नेमिचंद सिद्धान्तिदेव ऐसा और कहीं पर नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव ऐसा आता है।
कौनसी जगह क्या उपयुक्त है, बताए।

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आपकी नज़र पैनी है।
फिर भी यहाँ कोई अन्तर नहीं है, ये तो नामों के लिखने के तरीके हैं, काव्य के ज़ोर से या कोई विशेष भावाभिव्यक्ति से। जैसे - किशन या कृष्ण।

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यहाँ नेमिचन्द के दो अर्थ सम्भावित हैं - श्री कृष्ण द्वारा वन्दित 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ या माधवचंद्र त्रैविद्यदेव द्वारा वन्दित नेमिचन्द्र आचार्य

डॉ प्रवीण जी जैन (बाँसवाड़ा) ने उनके गुणस्थान चर्चा के प्रवचनों में पूरे मंगलचरण का अर्थ बताया है:

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